IAS-IPS In Politics : 1993 में केंद्रीय गृह सचिव नरिंदर नाथ वोहरा की अगुआई में एक कमेटी बनी। इसे वोहरा कमेटी के नाम से जाना गया। इसने अपराधियों, अफसरों और नेताओं के बीच गठजोड़ खत्म करने के लिए एक रिपोर्ट सौंपी जो अभी तक धूल फांक रही है। इस बीच अफसरों और नेताओं का गठजोड़ बहुत तेज होता जा रहा है।
2022 को अचानक एक चौंकाने वाली खबर आती है। ईडी के जॉइंट डायरेक्टर राजेश्वर सिंह बीजेपी जॉइन करने वाले हैं। तब तक उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका था। वीआरएस मंजूर होने के दिन ही तय हो गया कि राजेश्वर सिंह लखनऊ के सरोजनीनगर विधानसभा चुनाव से बीजेपी कैंडिडेट होंगे। यही हुआ भी। उन्होंने चुनाव जीत लिया और आज वो विधानसभा में भाजपा के सदस्य हैं। राजेश्वर सिंह ने ईडी में रहते हुए कॉमनवेल्थ गेम्स, टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, सहारा-सेबी केस, एयरसेल-मैक्सिस डील जैसे मामलों की जांच की जिस पर कितना सियासी तूफान पैदा हुआ हम सबको पता है। कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विजय कुमार अपनी पत्नी अनुपमा कुमारी के साथ भाजपा में शामिल हो गए। 1988 बैच के आइपीएस विजय कुमार इस वर्ष 31 जनवरी को ही डीजीपी पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। इसी तरह कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहे असीम अरुण भी भाजपा से विधायक बनकर अब मन्त्री है।
सफल रहा IAS-IPS अफसरों का सियासत में एंट्री का रिकॉर्ड; संसद तक तय किया सफर
देश के राजनीतिक पटल पर यशवंत सिन्हा, मीरा कुमार, अजित जोगी व ओपी चौधरी समेत कई ऐसे नाम हैं, जो पहले नौकरशाह और फिर सफल राजनेता रहे। यूपी के पूर्व डीजीपी बृजलाल ने सेवाकाल पूरा होने के बाद राजनीति का रुख किया था। उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रह चुके बृजलाल ने भाजपा का दामन थामने के बाद सियासी गलियारे में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और राज्यसभा तक का सफर तय किया। 1977 बैच के आइपीएस अधिकारी बृजलाल सेवानिवृत्त होने के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे।
जीएल मीणा भी लड़ रहे चुनाव
पुलिस महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए जीएल मीणा ने भी सेवानिवृत्त होने के बाद राजस्थान में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और अपने लिए राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं। पुलिस महानिदेशक के पद से ही सेवानिवृत्त सूर्य कुमार शुक्ला भी भगवा ओढ़कर राजनीति में अपनी जगह बनाने के प्रयासों में लगे हैं। पूर्व आइपीएस अधिकारी स्वर्गीय अहमद हसन ने भी सेवाकाल पूरा होने के बाद सपा की सदस्यता ग्रहण की और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। कई आइएएस अधिकारियों ने भी खादी पहनकर दूसरी पारी में माननीय बनने का सफर आसान किया। इनमें पूर्व आइएएस अधिकारी कृष्ण करुणाकरण नायर, पीएल पुनिया, अरविंद शर्मा समेत कई नाम शामिल हैं। पुनिया ने कांग्रेस का दामन थामने के बाद संसद तक का सफर तय किया था।
वीआरएस लेकर कई अधिकारियों ने सियासी रण में दी दस्तक
पूर्व आइपीएस अधिकारी अरविंद सेन इस बार लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर फैजाबाद सीट से किस्मत आजमाने को तैयार हैं। वह पूर्व सांसद स्वर्गीय मित्रसेन यादव के पुत्र हैं, जबकि बसपा के टिकट पर मथुरा सीट से इस बार पूर्व आइआरएस अधिकारी सुरेश सिंह मैदान में हैं। कई अधिकारी तो ऐसे भी रहे, जिन्हें वीआरएस लेकर चुनावी रण में अपनी किस्मत आजमाने का दांव चला और सफल रहे। आइपीएस अधिकारी महेन्द्र सिंह यादव भी वीआरएस लेने के बाद भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते थे।
हितों से टकराव
चीफ इलेक्शन कमिश्नर रह चुके वीएस संपत ने इस ट्रेंड पर जबर्दस्त नाराजगी जताई थी। सर्विस छोड़ कर तुरंत राजनीतिक दल जॉइन करने को उन्होंने अनैतिक करार दिया। ये स्थिति विचित्र है। शायद रूल बनाने वालों ने भी नहीं सोचा होगा। नौकरशाह रिटायरमेंट या वीआरएस के तुरंत बाद कोई कॉरपोरेट जॉब नहीं कर सकते। इसके लिए कनफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट का क्लॉज है। फिर राजनीतिक दल जॉइन करने से तो ज्यादा बड़ा कनफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट पैदा हो सकता है, इस पर कोई पार्टी नहीं सोच रही है। 2012 में चुनाव आयोग ने सरकार से एक सिफारिश की थी। रिटायरमेंट लेने वाले या वीआरएस लेने वाले आईएएस-आईपीएस अफसर कम से कम दो साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहें। लेकिन सरकार ने इसे नहीं माना। उन्होंने ने कहा था कि आज इस्तीफा कल चुनाव पर तत्काल रोक लगनी चाहिए नहीं तो सत्ता की मलाई में डूब जाएगी सेवा की कुर्सी…
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