कानपुर : कहानियों से शायरी तक राजा-रानी हमेशा ही शामिल रहे हैं। लेकिन कानपुर में तो तरक्की के तमाम प्रोजेक्ट रानी के नाम पर फंस रहे हैं। विकास प्राधिकरण के करीब 400 करोड़ के प्रोजेक्ट रानी साहिबा के चार आने के पट्टे की मार से घायल होकर अदालतों की पनाह में हैं। क्या किस्सा है यह.. दो मामलों से समझिए।
20 करोड़ की जमीन चवन्नी के पट्टे ने फ़साई
काकादेव के एल ब्लॉक में प्लॉट नंबर 440 व 441 का आवंटन केडीए ने एक मिशनरी स्कूल के नाम पर किया। बाद में इस जमीन के दो दावेदार खड़े हो गए। दोनों ने रानी कुंवर की जमींदारी का पट्टा दिखाते हुए कहा कि जमीन उनकी है। लड़ाई वर्षों चली। प्लॉट 440 तो किसी तरह स्कूल को मिल गया लेकिन 441 पर लगभग 20 वर्षों से लड़ाई जारी है। दोनों जमीनें लगभग दो-दो हजार वर्ग गज की हैं। जिनकी कीमत आज लगभग 20 करोड़ है।
केडीए के पार्क की जमीन पर 110 साल पुराना पट्टा
डबल पुलिया से देवकी पैलेस जाने वाली रोड पर केडीए ने 5000 वर्ग गज के एक प्लॉट पर पार्क का प्रस्ताव किया था। लेआउट प्लान में पार्क को खूबसूरत बनाने की तैयारी भी हो गई। इस जमीन के कई दावेदार खड़े हो गए। सभी ने 110 साल पहले रानी कुंवर द्वारा पट्टा मिलने का दावा किया और एक-एक करके लगभग 25 परिवारों ने कब्जा जमा लिया। केडीए ने यहां पांच बार ध्वस्तीकरण अभियान चलाया लेकिन फिर कब्जे हो गए। आखिर में हाईकोर्ट के निर्देश पर पार्क की जमीन तो खाली करा ली गई लेकिन बाकी जमीन अभी भी कब्जे में है।
अब भी चल रहा रानी का सिक्का
जमींदारी खत्म हुए कई दशक बीत गए लेकिन यहां आज भी रानी साहिबा का सिक्का चलता है। रानी कुंवर की चार आना की जमींदारी का पट्टा 400 करोड़ रुपए के प्रोजेक्टों पर भारी है। कानपुर विकास प्राधिकरण की शहर में 150 से ज्यादा आवासीय योजनाएं हैं। 100 योजनाओं में ये पट्टे विकास कार्यों में बाधक बन चुके हैं। शहर में तमाम इलाकों में रानी कुंवर के पट्टे ऐसे बिखरे पड़े हैं, जैसे मौत से पहले एक ही दिन रानी ने हजारों पट्टे जारी कर निग अगला हों। पुराने लोग मानते हैं कि कुछ पट्टे सही भी हो सकते हैं पर ज्यादातर पट्टों के जरिए फर्जीवाड़ा किया गया है। करोड़ों की जमीनें उलझ चुकी हैं। सैकड़ों मामले हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक लंबित हैं। कई लोग गुजर गए और उनके बेटे केस लड़ रहे हैं। केडीए अफसरों के हाथ-पांव किसी फाइल में रानी कुंवर का पट्टा देखते ही फूल जाते हैं।
हकीकत में एक नहीं दो रानी कुंवर
पुराने लोग बताते हैं कि कानपुर में रानी कुंवर एक नहीं बल्कि दो थीं। एक का नाम था शिव रानी कुंवर था और एक का नाम सिर्फ रानी कुंवर था। इनके पास कानपुर की चार आने की जमींदारी थी। रानी कुंवर के खानदान में से ही एक सदस्य ने कहा- लोग गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं। रानी कुंवर की जमींदारी जगन सिंह मोहाल की थी और शिवरानी कुंवर की जमींदारी दिलीप सिंह मोहाल की थी। शिवरानी कुंवर के जिम्मे कानपुर में जूही कलां का क्षेत्र था और रानी कुंवर के अलग-अलग जमीन हुआ करती थी। आज भी रियासत में जर्म बहुत है। वह कहते हैं कि दोनों रानी कुंवर की मौत वर्षों पहले हो चुकी है। परमपुरवा चौकी के सामने रानी कुंवर का बेहतरीन मंदिर भी है।
फाइलों में जमींदार जिंदा, सरकारी मशीनरी परेशान
दोनों रानी कुंवर को मिलाकर जूही कलां, जूही खुर्द, किदवईनगर, नौबस्ता, भन्नापुरवा, फजलगंज, वाजिदपुर, जाजमऊ, परमपुरवा और काकादेव जैसे पॉश इलाकों में जमीनें हुआ करतीं थीं। जमींदारी खत्म होने के बाद पहले नगरपालिका और बाद में केडीए के पास तमाम जमीनें आ चुकीं थीं। कुछ जमीनें दोनों रानी कुंवर के पास रह गईं। जब केडीए ने आवासीय योजना बनानी शुरू की तो कुछ लोग दावेदार बनकर खड़े हो गए कि उनके नाम पर रानी ने जमींदारी प्रथा खत्म होने से पहले ही पट्टा कर दिया था। केडीए ने उन्हें जबरन हटाने की कोशिश की तो वे कोर्ट चले गए और वर्षों से लड़ाई लड़ रहे। अधिकांश के पास एक पैसा प्रति बीघे में पट्टा कागज, मोहर और पुरानी लिखावट के जानकारों का इस्तेमाल हाता है। नतीजा जमींदार
फाइलों में जिंदा हैं, सरकार परेशान है।
इस मामले में केडिए के सचिव शत्रोहन वैश्य ने कहा कि अधिकांश जमीन केडीए द्वारा अर्जित है। रानी कुंवर के नाम से जो भी जमींदारी पट्टे आते हैं उनमें ज्यादातर फर्जी निकलते हैं। ऐसे हर पट्टे की जांच की जाती है। पुराना रिकॉर्ड तलाशना और इसकी क्रॉस चेकिंग करना बड़ी चुनौती का काम है। कई बार तो रिकॉर्ड ही नहीं मिलता। केडीए के लिए ये पट्टे परेशानी का सबब हैं। मुझे नहीं लगता कि इतने ढेर से पट्टे रानी कुंवर ने किए होंगे।
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