बालू ठेकों के वर्चस्व में प्रयागराज में पहली बार 1996 में एके-47 से हत्या की गई थी। सरकार बदली, तो आरोपियों के खिलाफ केस तेज हुआ और कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई। उदयभान करवारिया अब आठ साल बाद जेल से बाहर आ रहा है।
लखनऊ/प्रयागराज: वर्ष 1996 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के सिविल लाइन्स फिल्मी स्टाइल में विधायक जवाहर पंडित और उनके चालक गुलाब को एके-47 से भूनने वाले सजायाफ्ता बीजेपी के पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की समयपूर्व रिहाई होगी। जेल में अभी तक उनके द्वारा काटी गई सजा और अच्छे आचरण को देखते हुए सरकार ने उन्हें रिहा करने का फैसला किया है।
राज्यपाल की मंजूरी के बाद कारागार विभाग ने पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की रिहाई का आदेश जारी कर दिया है। आदेश में कहा गया है कि 30 जुलाई 2023 तक उदयभान करवरिया ने आठ वर्ष तीन माह 22 दिन की अपरिहार सजा और आठ वर्ष नौ माह 11 दिन की सपरिहार सजा काट ली है। एसएसपी और डीएम प्रयागराज द्वारा समयपूर्व रिहाई की संस्तुति किए जाने, जेल में करवरिया का आचरण उत्तम होने और दयायाचिका समिति द्वारा की गई संस्तुति के चलते समयपूर्व रिहाई का आदेश किया जा रहा है। आदेश में कहा गया है कि एसपी और डीएम प्रयागराज के संतोषानुसार दो जमानतें, उतनी ही धनराशि का एक जाती मुचलका प्रस्तुत करने पर बंदी को मुक्त कर दिया जाए।
पहली बार प्रयागराज में चली थी एके-47
13 अगस्त, 1996 को सपा के पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित को करवरिया बंधुओं ने दिन दहाड़े प्रयागराज में गोलियों से छलनी कर दिया था। यह पहली बार था, जब इलाहाबाद में एके-47 गरजी थी। इस मामले में अदालत ने चार नवंबर 2019 में करवरिया बंधुओं (पूर्व बसपा सांसद कपिल मुनि करवरिया, पूर्व भाजपा विधायक उदयभान करवरिया और पूर्व बसपा एमएलसी सूरजभान करवरिया), उनके साथी रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
बालू के ठेकों को लेकर शुरू हुई थी अदावत
करवरिया परिवार और पूर्व विधायक जवाहर पंडित के बीच बालू के ठेकों पर वर्चस्व को लेकर अदावत शुरू हुई थी। जवाहर पंडित झूंसी इलाके में रहते थे और करवरिया परिवार अतरसुइया के खुशहाल पर्वत मुहल्ले में रहता था। जवाहर पंडित जौनपुर के खैरतारा गांव से वर्ष 1980 में इलाहाबाद आकर बसे थे। जवाहर पंडित ने शुरुआती दौर में मंडी में बोरी सिलने का काम किया। फिर शराब के धंधे में घुस गए। इसके बाद बालू के ठेकों के लिए हाथ मारने शुरू कर दिए। यहीं से जवाहर पंडित और करवरिया परिवार के बीच तनातनी शुरू हो गई। जवाहर पंडित की 1989 में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से मुलाकात हुई, तो वह कुछ ही समय में उनके करीबी हो गए। वर्ष 1993 में सपा की सरकार बनी और जवाहर पंडित विधायक। देखते ही देखते शहर में उनका जलजला हो गया।
बालू के ज्यादातर ठेकों पर जवाहर पंडित का कब्जा हो गया। करवरिया परिवार का धंधा ठप होने लगा। बातचीत कर मामला सुलझाने की कोशिश की गई, लेकिन बात बनी नहीं, बल्कि अदावत और बढ़ गई, लेकिन सपा की सरकार होने से जवाहर पंडित का पलड़ा भारी रहा। वर्ष 1996 में प्रदेश के सियासी समीकरण बदले, गेस्ट हाउस कांड हुआ, सपा की सरकार गिर गई। सरकार के गिरते ही करवरिया बंधुओं ने जवाहर पंडित को ठिकाने लगाने की ठान ली। इसका आभास जवाहर पंडित को भी था। उन्होंने दो बार अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई, लेकिन इससे पहले 13 अगस्त 1996 को उनकी हत्या हो गई।
बीजेपी के टिकट पर दो बार विधायक बने उदयभान
मूलरूप से कौशांबी के मंझनपुर के चकनारा गांव के रहने वाले करवरिया परिवार को पूरे इलाहाबाद में दबंगई के लिए जाना जाता था। पहले रियल एस्टेट फिर बालू के ठेकों पर उनका वर्चस्व था। उदयभान करवरिया इस परिवार के पहले सदस्य थे, जिन्होंने सियासी जीत हासिल की थी। इससे पहले उनके दादा जगत नारायण करवरिया 1967 में सिराथू सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन हार हाथ लगी थी। फिर उदयभान के पिता विशिष्ट नारायण करवरिया ऊर्फ भुक्खल महाराज ने इलाहाबाद उत्तरी और दक्षिणी विधानसभा से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें भी जीत नहीं मिली।
वर्ष 1997 में उदयभान करवरिया कौशांबी जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने। इसके बाद साल 2000 में पंचायत चुनाव हुए और उदयभान के बड़े भाई कपिल मुनि करवरिया ने कौशांबी के जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता। वर्ष 2002 में उदयभान ने इलाहाबाद की बारा सीट पर पहली बार बीजेपी को जीत दिलाई और विधायक बने। 2007 के विधानसभा चुनाव में उदयभान को भाजपा ने फिर बारा से टिकट दिया और उदयभान फिर से विधायक बने। इलाहाबाद की 12 विधानसभा सीटों में से केवल बारा ही भाजपा जीतने में सफल रही थी। 2012 में बारा की विधानसभा सीट सुरक्षित हो गई। उदयभान बारा छोड़ इलाहाबाद उत्तरी से लड़े, लेकिन यहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
कलराज मिश्रा ने दी थी करवरिया बंधुओं के पक्ष में गवाही
जवाहर पंडित हत्याकांड में तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्रा ने कपिलमुनि करवरिया के पक्ष में गवाही दी थी। दरअसल, पंडित की हत्या के बाद उसके हिस्ट्रीशीटर भाई सुलाकी यादव ने हत्याकांड में कपिल मुनि करवरिया, उदय भान करवरिया, सूरजभान करवरिया, श्याम नारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी को नामजद किया था। इसमें से श्याम नारायण करवरिया उर्फ़ मौला महाराज (उदयभान के चाचा) की 1996 में मौत हो गई थी। तीनों भाइयों ने दावा किया कि वे घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे। कपिल मुनि करवरिया ने दावा किया था कि वो उस दिन इलाहाबाद में नहीं थे और उन्होंने अपना पूरा दिन बीजेपी नेता कलराज मिश्र के साथ बिताया था। कलराज मिश्र ने इस बयान के पक्ष में तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी को खुला खत लिखा था और मामले की सीबी सीआईडी जांच की मांग की थी। कलराज मिश्र कपिलमुनि के पक्ष में गवाही भी देने आए थे, लेकिन कोर्ट ने उनकी गवाही को स्वीकार नहीं किया था।
सपा सरकार आते ही तेज हो गई थी पैरवी
वर्ष 2012 में यूपी में सपा की सरकार बनते ही जवाहर पंडित हत्याकांड की सुनवाई तेज हो गई। वर्ष 2013 में हाईकोर्ट ने मामले की कार्यवाही में लगा स्टे खारिज कर दिया और लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे उदयभान को गिरफ्तार करने का वारंट निकाल दिया। उदयभान दो महीने फरार रहे। एक जनवरी 2014 को उन्होंने सरेंडर कर दिया। बाद में कपिल मुनि और सूरजभान भी जेल चले गए। तीनों भाई जेल चले गए, तो बीजेपी ने उदयभान की पत्नी नीलम को मेजा सीट से चुनाव लड़ाया। बीजेपी ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की।
बीजेपी सरकार ने की थी केस वापसी की पैरवी
जवाहर पंडित हत्याकांड में करवरिया बंधुओं को सजा होने के ठीक 13 महीने पहले चार अक्टूबर 2018 को उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद सेशन कोर्ट में केस वापसी की अर्जी दाखिल की थी। सरकार की तरफ से कहा गया था कि करवरिया बंधुओं के के खिलाफ आरोप साबित होने के लिहाज से पर्याप्त सबूत नहीं है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ जवाहर पंडित की पत्नी विजमा यादव हाईकोर्ट गई थीं। हाईकोर्ट ने सरकार की इस अपील को ख़ारिज करते हुए मुकदमा जारी रखने के निर्देश दिए थे।
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