पत्रकारों का संगठित होना ज़रूरी क्यों?

अभय त्रिपाठी :- पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी हैं, लेकिन प्रहरी तभी सशक्त होता है जब वह अकेला नहीं...

पत्रकारों का संगठित होना ज़रूरी क्यों?

अभय त्रिपाठी :- पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी हैं, लेकिन प्रहरी तभी सशक्त होता है जब वह अकेला नहीं...

पत्रकारों का संगठित होना ज़रूरी क्यों?

अभय त्रिपाठी :- पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी हैं, लेकिन प्रहरी तभी सशक्त होता है जब वह अकेला नहीं...

कानपुर : बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने सैकड़ों वकीलों के साथ पुलिस आयुक्त को दिया ज्ञापन।

कानपुर बार एसोसिएशन के बैनर तले अधिवक्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस आयुक्त से मुलाकात कर...

मैथिलीशरण गुप्त: हिंदी और हिंदुस्तान को आजीवन समर्पित रही जिनकी कलम।

अभय त्रिपाठी :–हिंदी साहित्य के इतिहास में बेहद ख़ास दिन। 03 अगस्त सन् 1886 जिस दिन झांसी के...

कानपुर : इंटररेंज-9 गैंग में पुलिस ने 5 नाम बढ़ाए, उत्पीड़न के खिलाफ अधिवक्ता देंगे धरना।

पहले 21 सदस्यों का घोषित हुआ था इंटररेंज गैंग, इनमें 17 वकील। दीनू गैंग में दो भाजपा नेता समेत...

प्रयागराज : पत्रकार की चाकुओं से गोदकर की निर्मम हत्या, पुलिस ने आरोपी का किया हाफ एनकाउंटर।

प्रयागराज : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के सिविल लाइंस इलाके में बीती रात पत्रकार एलएन सिंह की...

लखनऊ-वाराणसी हाईवे 9500 करोड़ से बनेगा 6 लेन। राजधानी से काशी पहुँचगे सिर्फ 3 घँटे में।

लखनऊ : पूर्वांचल के यात्रियों के लिए बड़ी खुशखबरी है। उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार मिलकर...

Kanpur Metro : गणतंत्र दिवस तक नौबस्ता तक शुरू होगा सफर, लाखों लोगों की यात्रा होगी आसान।

कानपुर। वर्ष 2019 से मेट्रो के पहले कारिडोर पर काम कर रहे प्रबंधन ने अब अंतिम 100 दिन का ब्लू...
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कानपुर से कोई ढाई सौ किलोमीटर दूर ओरछा (मध्यप्रदेश) में राजा राम का मंदिर है। यहां पट खुलते ही सशस्र पुलिस की गारद राजा राम को सलामी देती है और फिर सिर नवाकर उनसे राजकाज की आज्ञा मांगती है। इसके बाद ही जिले का सरकारी कामकाज शुरू होता है, यह सब अंग्रेजों के शासन में भी होता था। यहां के राजा राम की सत्यकथा कोई 600 साल पुरानी है। तब यहां बुंदेली राजा मधुकर का राज था। मधुकर कृष्ण भक्त तो उनकी रानी कुंअर गणेश राम भक्त थीं। एक दिन राजा ने अपनी रानी कुंअर गणेश से यूं ही कह दिया कि राम की इतनी भक्त हो तो उन्हें अयोध्या से ओरछा ले आओ। रानी अयोध्या आ गईं और यहां 21 दिन सरयू तट पर राम की आराधना में डूब गईं। मान्यता है कि राम उनकी गोद में मूर्ति के रूप में प्रकट हुए। साथ ही शर्त रक्खी कि वह ओरछा चलेंगे लेकिन वहां जहां उन्हें रख दिया जाएगा, स्थापित हो जाएंगे। वह अयोध्या से वहां बालरूप में जाएंगे और राजा के रूप में विराजेंगे। रानी मूर्ति लेकर ओरछा आ गईं और मुर्ति को महल की रसोई में रख दिया। राम उसी ठौर वहीं स्थापित हो गए। पास ही उनके लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाया गया, लेकिन रसोई से राम की मूर्ति कोई तस से मस नहीं कर सका। तब राजा मधुकर ने अपने महल को ही मंदिर में तब्दील करवा दिया। तब से रामजी वहां राजा के रूप में विराजमान हैं। ओरछा का प्रशासन उन्हें आज भी अपनी सरकार और राजा मानता है। इसलिए पूरे प्रोटोकॉल के साथ मंदिर में राजा राम को सलामी दी जाती है। डीएम और एसपी भी मंदिर में माथा टेकते हैं…। पूरी दुनिया से लोग यहां आते हैं। देश में इस मंदिर की अयोध्या जैसी मान्यता है। रामनवमी में वहां भारी भीड़ पहुंचती है….।


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