यूपी में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, जाति की राजनीति भी वैसे-वैसे ही अपने रंग में आती जा रही है। कानपुर के बिकरू में दबंग विकास दुबे और उसके गुर्गों के एनकाउंटर के बाद दावा किया गया कि प्रदेश का ब्राह्मण समुदाय सीएम योगी आदित्यनाथ से नाराज है। आरोप लगाए गए कि योगी सरकार ब्राह्मणों को जानबूझकर निशाना बना रही है। ऐसेमें ब्राह्मणों की कथित नाराजगी के मद्देनजर गैर-बीजेपी पार्टियां प्रदेश में विप्रों को साधने में जुट गई हैं। बिकरू कांड में शामिल रहे अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे इस सियासी हथकंडे में एक मोहरे के तौर पर इस्तेमाल की जा रही हैं।
खुशी दुबे को न्याय दिलाने का जिम्मा बीएसपी ने उठाया है। प्रदेश के कई हिस्सों में प्रबुद्ध सम्मेलन करे जरिए ब्राह्मणों को साधने की कोशिश पर निकले बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्र ने साफतौर पर योगी सरकार पर आरोप लगाया है कि ब्राह्मण होने के नाते ही खुशी दुबे को परेशान किया जा रहा है। उनका कहना है कि खुशी दुबे पर फर्जी मुकदमे लगाए गए हैं और उन्हें जबरन जेल में रखा गया है। उन्होंने खुशी को न्याय दिलाने के लिए उनका केस तक लड़ने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में खुशी दुबे प्रदेश में ब्राह्मण वोटबैंक के सियासी खींचतान की प्रमुख धुरी बन सकती हैं।
खुशी दुबे पर क्या है मुकदमा
साल 2020 में 2 जुलाई को कानपुर के बिकरू में दबिश देने गई पुलिस की टीम पर विकास दुबे और उसके गुर्गों ने हमला कर दिया। इस दौरान 8 पुलिसकर्मी मारे गए थे। घटना के बाद विकास दुबे अपने साथियों के साथ फरार हो गया। इसमें उसका शार्प शूटर अमर दुबे भी था। बाद में अलग-अलग जगहों पर पुलिस ने एनकाउंटर में दुबे गैंग के कई अपराधियों का एनकाउंटर कर दिया। विकास दुबे भी एनकाउंटर में मारा गया। अमर दुबे को हमीरपुर में एनकाउंटर में पुलिस ने ढेर कर दिया।
बिकरू कांड से दो दिन पहले अमर दुबे की खुशी दुबे के साथ शादी हुई थी। फिर भी अमर के एनकाउंटर के बाद पुलिस ने खुशी दुबे को गिरफ्तार कर लिया। उन पर बलवा, हत्या का प्रयास, हत्या, डकैती, षड्यंत्र रचने, चोरी की संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करने से संबंधित धाराओं में केस दर्ज किया गया था। इसके बााद सितंबर 2020 में खुशी दुबे के खिलाफ दर्ज मामलों में धाराएं बढ़ा दी गईं। उन पर 17 धाराओं में केस दर्ज किया गया है।
खुशी के समर्थन में क्या दलीलें
खुशी के सपोर्ट में जो सबसे प्रमुख दलील दी जा रही है, वह ये है कि शादी के दो दिन बाद ही बिकरू कांड घटित हुआ। ऐसे में दो दिन की दुलहन की की इस हत्याकांड में क्या भूमिका हो सकती है? इसके अलावा खुशी के अधिवक्ता शिवाकांत दीक्षित ने पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा था कि खुशी दुबे के पास से पुलिस कुछ भी बरामद नहीं कर पाई थी। पूरे घटनाक्रम में उनकी भूमिका भी तय नहीं हो पाई है। इसके बाद भी पुलिस उन्हें कुख्यात अपराधी बता रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, किशोर न्याय बोर्ड ने खुशी को घटना के वक्त नाबालिग घोषित किया था। इसके बाद आरोपी के पिता शिवाकांत त्रिपाठी ने खुशी को अमर दुबे की पत्नी कहे जाने पर ही आपत्ति जता दी थी। उनका कहना था कि अगर खुशी दुबे घटना के वक्त नाबालिग थी, तो उसकी शादी भी वैध कैसे है? ऐसे में उसे अमर दुबे की पत्नी होने का दर्जा भी कैसे दिया जा सकता है।
खुशी के समर्थन में यह दलील भी दी जा रही है कि उसके परिवार का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। उसे इस घटना में फंसाया जा रहा है। वह न तो विकास दुबे की सहयोगी थी और न ही उसके गैंग का ही हिस्सा थी। वह सिर्फ गलत समय में गलत जगह पर थी। पुलिस पर आरोप भी लगाया गया कि उन्होंने खुशी दुबे को लेकर मनगढ़ंत कहानी बताई है।
खुशी के खिलाफ क्या है दलील
वहीं, अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने दावा किया है कि खुशी इस घटना में हिस्सेदार थी और वह उस दिन केवल मूकदर्शक नहीं थी। उन्होंने जीवित गवाहों के बयानों का संदर्भ देते हुए कहा कि वह पुलिस पर हमला करने के लिए अपराधियों की मदद कर रही थी और उन्हें उकसा रही थी। बोर्ड के खुशी को नाबालिग घोषित किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड ने यह भी घोषित किया है कि 16 साल की आरोपी खुशी के पास अपराध करने की अपेक्षित मानसिक और शारीरिक क्षमता है। साथ ही वह इसके परिणामों को समझने की भी क्षमता रखती है।
खुशी दुबे बिकरू कांड में आरोपी या दोषी है या नहीं, यह तो न्यायालय तय करेगा लेकिन हालिया रुझानों से लगता है कि वह आने वाले विधानसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनने वाली हैं। बीएसपी उनके जरिए योगी के ब्राह्मण विरोधी रुझान को जनता के दिलोदिमाग में बैठाने की कोशिश में लगी है। यही कारण है कि अपनी रैलियों में बीएसपी नेता सतीश मिश्रा खुशी दुबे का जिक्र करना नहीं भूलते।
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