दिल्ली :-सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10% आरक्षण दिए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया है। 5 न्यायाधीशों में से 3 ने EWS आरक्षण के सरकार के फैसले को संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन नहीं माना है। यानी यह आरक्षण जारी रहेगा। चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने EWS के खिलाफ फैसला सुनाया है, जबकि जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पक्ष में फैसला सुनाया है।
EWS के पक्ष में 3 जजों के फैसले पढ़िए…
- जस्टिस दिनेश माहेश्वरी- केवल आर्थिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण संविधान के मूल ढांचे और समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। आरक्षण 50% तय सीमा के आधार पर भी EWS आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि 50% आरक्षण की सीमा अपरिवर्तनशील नहीं है।
- जस्टिस बेला त्रिवेदी- मैं जस्टिस दिनेश माहेश्वरी से सहमत हूं और यह मानती हूं कि EWS आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है और न ही यह किसी तरह का पक्षपात है। यह बदलाव आर्थिक रूप से कमजोर तबके को मदद पहुंचाने के तौर पर ही देखना जाना चाहिए। इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है।
- जस्टिस पारदीवाला- जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस बेला त्रिवेदी से सहमत होते समय मैं यहां कहना चाहता हूं कि आरक्षण की अंत नहीं है। इसे अनंतकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए, वरना यह निजी स्वार्थ में तब्दील हो जाएगा। आरक्षण सामाजिक और आर्थिक असमानता खत्म करने के लिए है। यह अभियान 7 दशक पहले शुरू हुआ था। डेवलपमेंट और एजुकेशन ने इस खाई को कम करने का काम किया है।
विरोध में दो जजों ने फैसला सुनाया, पढ़िए…
1.जस्टिस रवींद्र भट- आर्थिक रूप से कमजोर और गरीबी झेलने वालों को सरकार आरक्षण दे सकती है और ऐसे में आर्थिक आधार पर आरक्षण अवैध नहीं है। लेकिन इसमें से SC-ST और OBC को बाहर किया जाना असंवैधानिक है। मैं यहां विवेकानंदजी की बात याद दिलाना चाहूंगा कि भाईचारे का मकसद समाज के हर सदस्य की चेतना को जगाना है। ऐसी प्रगति बंटवारे से नहीं, बल्कि एकता से हासिल की जा सकती है। ऐसे में EWS आरक्षण केवल भेदभाव और पक्षपात है। ये समानता की भावना को खत्म करता है। ऐसे में मैं EWS आरक्षण को गलत ठहराता हूं।
- चीफ जस्टिस यूयू ललित- मैं जस्टिस रवींद्र भट के विचारों से पूरी तरह से सहमत हूं।
फाइनल फैसला- समान्य वर्ग के गरीबों को दिया जाने वाला 10% आरक्षण जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों में से 3 जजों ने इसे सही ठहराया। जस्टिस रवींद्र भट और CJI यूयू ललित अल्पमत में रहे।
हमने 50% का बैरियर नहीं तोड़ा- केंद्र की दलील.
केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा। उन्होंने कहा था- 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है।
27 सितंबर को कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला
बेंच ने मामले की साढ़े छह दिन तक सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। CJI ललित 8 नवंबर यानी मंगलवार को रिटायर हो रहे हैं। इसके पहले 5 अगस्त 2020 को तत्कालीन CJI एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामला संविधान पीठ को सौंपा था। CJI यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कुछ अन्य अहम मामलों के साथ इस केस की सुनवाई की।
क्या आर्थिक आरक्षण संविधान के खिलाफ है।
EWS आरक्षण को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है। कोर्ट ने पूछा था, क्या EWS आरक्षण देने के लिए संविधान में किया गया संशोधन उसकी मूल भावना के खिलाफ है? एससी/एसटी वर्ग के लोगों को इससे बाहर रखना संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है क्या? राज्य सरकारों को निजी संस्थानों में एडमिशन के लिए EWS कोटा तय करना संविधान के खिलाफ है क्या?
सवर्णों को आरक्षण संविधान के सीने में छुरा घोंपने जैसा।
EWS रिजर्वेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार जोरदार बहस हुई। वकीलों की दलील थी कि सवर्णों को आरक्षण देना संविधान के सीने में छुरा घोंपने जैसा है। हालांकि SC इस बात से सहमत नहीं दिखा था। तब बेंच ने कहा था कि इस बात की जांच की जाएगी कि ये सही है या गलत। सितंबर में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई। इस दौरान संविधान, जाति, सामाजिक न्याय जैसे शब्दों का भी जिक्र हुआ।
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