कानपुर के डिवीजनल कमिश्नर रहे इफ्तिखारुद्दीन अपने सरकारी अवास पर धर्मांतरण की मुहिम चला रहे थे। एसआइटी की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2015 के रमजान माह के दौरान अपने राजकीय आवास में नमाज, तराबी और तकरीर का आयोजन करके उसकी वीडियोग्राफी कराई गई थी। इसमें उनके अधीनस्थ मुस्लिम कर्मचारियों को शामिल किया गया था। साथ ही, कुछ धर्म प्रचारकों को बाहर से बुलाया गया था, जिन्होंने तकरीरें की थी।
एसआईटी के सामने गवाह निर्मल कुमार ने बयान दिया कि कमिश्नर साहब ने उससे बोले कि आपके परिवार व तमाम दलित वर्ग के लोगों को इस्लाम धर्म से जोड़ दें तो आपके परिवार की मदद कानपुर के मदरसों से होती रहेगी। इस पर मैंने कहा कि मेरा परिवार किसी भी कीमत पर इस्लाम धर्म ग्रहण नहीं करेंगे। इस पर इफ्तिखारुद्दीन ने कहा कि अगर ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हारी जमीन नहीं बचेगी। इसी तरह उनके अधीनस्थ कर्मचारी विनोद कुमार निषाद ने बयान दिया कि कमिश्नर साहब के आने के बाद बंगले का माहौल बदल गया था और रंगोली आदि हटा दी गई थी। हिंदू कर्मचारियों के कलावा पहनने और टीका लगाने की मनाही हो गई थी। बंगले पर रोजाना बाहर के लोग आकर नमाज पढ़ते थे। रमजान में इनकी संख्या कई गुना बढ़ जाती थी। कमिश्नर साहब टीका और कलावा देखकर कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करते थे और उनको गालियां देते थे।
हरियाणा और पंजाब में काम करने की जरूरत
कमिश्नर आवास पर आने वाला धर्म प्रचारक एहतेशाम अपनी तकरीर में कहता था कि हमको पंजाब और हरियाणा में काम करने की जरूरत है क्योंकि इन इलाकों में अपना कुदरती दीन है। अल्लाह के काम के लिए जेल जाने से भी नहीं डरना चाहिए। एसआईटी के हाथ लगे वीडियोज में एहतेशाम यह दावा करता नजर आ रहा है कि उसने तमाम लोगों का धर्मांतरण कराया।
धर्मांतरण के आरोप को नकारा
एसआईटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कमिश्नर इफ्तिखारुद्दीन ने धर्मांतरण कराने के आरोप को नकार दिया था। जबकि जांच में इसकी पुष्टि हुई थी। जब एसआईटी ने उनके द्वारा लिखी कई पुस्तकों के मुद्रक और प्रकाशक के बारे में पूछा, तो वह कोई पुख्ता जानकारी नहीं दे सके। वहीं जब पुस्तकों में लिखे आपत्तिजनक अंशों के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि इसमें कुछ अंश अन्य पुस्तकों पर आैर कुछ अंश कुरान की आयतों पर आधारित हैंं। वहीं कुछ अंश उनके निजी विचार हैं।
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