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➡️मायावती ने मऊ विधानसभा सीट से मुख्तार अंसारी का टिकट काटकर बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को पार्टी का उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया है. हालांकि, मुख्तार के खिलाफ मायावती पहले भी भीम राजभर को आजमा चुकी हैं, लेकिन भीम राजभर मुख्तार को हरा नहीं सके थे. ऐसे में देखना होगा कि इस बार मायावती का राजभर कार्ड क्या सियासी गुल खिलाता है।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी से किनारा कर लिया है. मायावती ने मऊ विधानसभा सीट से मुख्तार अंसारी का टिकट काटकर बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को पार्टी का उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया है. हालांकि, मुख्तार के खिलाफ मायावती पहले भी भीम राजभर को आजमा चुकी हैं, लेकिन भीम राजभर मुख्तार को हरा नहीं सके थे. ऐसे में देखना होगा कि इस बार मायावती का राजभर कार्ड क्या सियासी गुल खिलाता है

मायावती ने शुक्रवार को ट्वीट कर लिखा है कि बीएसपी का अगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा और आम चुनाव में प्रयास होगा कि किसी भी बाहुबली व माफिया आदि को पार्टी से चुनाव न लड़ाया जाए. इसी मद्देनजर ही आजमगढ़ मण्डल की मऊ विधानसभा सीट से अब मुख्तार अंसारी के बजाय यूपी के बीएसपी प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर के नाम को फाइनल किया गया है.

मुख्तार का बसपा से टिकट कटना तय था

बता दें कि यूपी के बांदा जेल में बंद मऊ सदर से बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी के सपा में शामिल होने के बाद से ही माना जा रहा है कि मायावती मुख्तार परिवार से किनारा करेगी. मुख्तार अंसारी पिछला विधानसभा चुनाव मऊ सीट से बसपा के टिकट पर जीते थे और उनके भाई अफजाल अंसारी 2019 में गाजीपुर से बसपा के टिकट पर सांसद बने थे.

सिबगतुल्लाह अंसारी के सपा में जाने के बाद मायावती ने मुख्तार अंसारी का मऊ सीट से टिकट काट दिया है और उनकी जगह भीम राजभर को उतारा है. मायावती इससे पहले भी 2012 के विधानसभा चुनाव में भी भीम राजभर को मुख्तार के खिलाफ टिकट देकर चुनाव लड़ाया था, लेकिन जीत नहीं दिला सकी. हालांकि, उस वक्त उन्होंने बाहुबली मुख्तार अंसारी को कड़ी टक्कर दी थी.

भीम राजभर को 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने मऊ सदर विधानसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया था. यह बसपा के लिए कठिन दौर था, उसी समय बसपा में रहे बाहुबली अंसारी बंधु मुख्तार व अफजाल ने बगावत कर कौमी एकता दल का गठन किया था. इससे पूर्वांचल की राजनीति काफी प्रभावित हुई थी. मुख्तार अंसारी ने अपना दल से चुनाव लड़ा और बसपा के प्रत्याशी भीम राजभर को 5,904 वोटों से मात दी थी.

भीम राजभर ने दी कड़ी टक्कर

मऊ विधानसभा सीट पर मुस्लिमों के निर्णायक होने के बावजूद भीम राजभर ने अच्छी लड़ाई लड़ी थी. 2012 में मऊ सीट पर कुल 20 उम्मीदवार किस्मत आजमाए थे. मुख्तार अंसारी कौमी एकता दल से चुनाव लड़ते हुए 70210 वोट हासिल किए थे और बसपा के भीम राजभर को 64,306 वोट मिले थे जबकि सपा से अल्ताफ अंसारी 54,216 वोट मिले थे. बीजेपी 10 हजार वोट भी नहीं पा सकी थी.

मुख्तार को मात देना आसान नहीं

बता दें कि 2012 विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले 20 कैंडिडेट में 8 मुस्लिम उम्मीदवार थे. इसके बाद भी बसपा मऊ सीट पर मुख्तार अंसारी के जीत के सिलसिले को रोक नहीं सकी थी. वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी ने करीब 96 हजार वोट हासिल किए थे और दूसरे नंबर बीजेपी गठबंधन से चुनाव लड़ रहे ओम प्रकाश राजभर की पार्टी से महेंद्र राजभर ने 88 हजार और सपा से अल्ताफ अंसारी ने 72 हजार वोट हासिल किए थे. ऐसे में देखना है कि मायावती का इस बार भीम राजभर का दांव कितना सफल होता है.

भीम राजभर का सफर

बसपा प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर का जन्म 3 सितंबर 1968 में को मऊ जनपद के कोपगंज ब्लॉक के मोहम्मदपुर बाबूपुर गांव में हुआ था. भीम राजभर ने अपनी प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा महाराष्ट्र से और सेकेंड्री शिक्षा नागपुर से पाई है. भीम राजभर की एक बहन है और इनके पिता रामबली राजभर कोल्ड फील्ड में सिक्योरिटी इंचार्ज थे.

भीम राजभर ने 1985 में ग्रेजुएशन किया और 1987 में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. एलएलबी पास भीम ने एक अधिवक्ता होने के साथ बसपा से ही अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत साल 1985 में की थी. वे बसपा के मऊ जिलाध्यक्ष और आजमगढ़ के कोर्डिनेटर बने और मायावती ने मुनकाद अली को हटाकर प्रदेश अध्यक्ष की कमान उन्हें सौंपी है. अब मऊ से एक बार उन्हें मुख्तार अंसारी के खिलाफ प्रत्याशी बनाया है.


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