उत्तर प्रदेश के अमेठी में पिछले सप्ताह कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते समय प्रियंका गांधी ने अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अमेठी से जुड़ी यादों और अमेठी के साथ गांधी परिवार के रिश्तों का भावुक होते हुए जिक्र किया था भाषण से जुड़े पहलुओं को इस दौरान वहां बने माहौल का जिक्र करते हुए आर्टिकल में समेटा गया है। कोई अंदाजा नहीं था कि ऐसा होने वाला है। उस दिन, जब मैं फुर्सतगंज के पास बीच रास्ते में प्रियंका जी से uptvlive.com का सवांददाता मिला तो उन्होंने कहा था कि पिता जी (राजीव गांधी) के बारे में बोलने का मन है। दिमाग में कमोबेश यही छवि उभरी कि एक राजनीतिक भाषण होगा जिसमें अमेठी से राजीव जी के लगाव और अपनापे का जिक्र होगा। उस दिन का यह आखिरी कार्यक्रम था। रात के लगभग नौ बज रहे थे। रायबरेली में 15 नुक्कड़ सभाओं के बाद अमेठी के कार्यकर्ताओं के बीच उनका यह भाषण था।
अमेठी से कांग्रेस प्रत्याशी किशोरी लाल शर्मा ने भी संक्षेप में भाषण दिया और प्रियंका माइक पकड़ कर खड़ी हो गई। शुरू के एक दो मिनट हम जैसे लोगों का ध्यान भी नहीं जा पाया कि बोल क्या रही हैं। पिता की जीप में शरारत करते दो बच्चे। वो राजीव जी के बारे में बोल रही थीं। जीप चलाकर अमेठी के गांव-गांव में जाना, जनता से राजीव जी का रिश्ता, उनकी नेकदिली और साहस के साथ साधनों के अभाव व सड़क-खरंजे का जिक्र। हल्का सा एक चित्र उभर रहा था। दिन भर की थकावट के बाद उनकी भरभरा गई आवाज में अचानक एक वाक्य तीर की तरह कान में घुसा। एक किशोर लड़की की घबराहट सुनाई देने लगी।
आगे का भाषण एक लड़की दे रही थी, जो अपने पिता की सलामती के लिए व्रत और उपवास रख रही थी और जिसकी रोज की नींद को देर रात घर लौट रहे पिता की पदचाप का इंतजार रहता था। फिर एक फोन की घंटी बजने का जिक्र आया और मैंने उस पूरी सभा में सन्नाटा पसरते देखा जैसे वह घटना ठीक अभी-अभी घट रही हो। एक बेटी अपनी मां को उसके पति के नहीं रहने की सूचना देने जा रही थी। घड़ी की सुई दस की ओर बढ़ रही थी। उस दिन भी यही समय रहा होगा। उन्नीस बरस की लड़की को, ऐसी स्त्री को उसके प्रेमी की मृत्यु की सूचना देनी थी जिसके लिए वह सात समुन्दर पार अपना सब कुछ छोड़कर भारत चली आई थी। फिर उन्होंने अपनी मां की आंखों के सामने छाने वाले अंधेरे का जब जिक्र किया तो पूरी सभा में सन्नाटा पसर गया। कई की आंखें नम हो गईं। वे उस हंसी के बारे में भी बोल रही थीं, जो राजीव गांधी के जाने के बाद, उन्होंने उस स्त्री की आंखों में, जिसे वे अपनी मां कहती है- दुबारा कभी नहीं देखी। सब कुछ धुंधला पड़ने लगा। सभा, राजनीति, चुनाव, उसका तनाव सब गायब होने लगा। जब मां द्वारा अमेठी से चुनाव लड़ने के फैसले का जिक्र आया, वर्षों से गुमसुम, विरह में टूटी हुई एक स्त्री के चट्टानी संकल्प का चित्र भी उभर रहा था।
भीड़ में से नारा गूंजा राजीव भैया अमर रहे’। मैंने ने चारों तरफ देखा। लोग रो रहे थे। दिल्ली से प्रयागराज जा रही ट्रेन में अपने शहीद पिता की अस्थियों के साथ बैठी एक बेटी के दुःख और क्रोध के पहाड़ को मैंने अमेठी के रेलवे स्टेशन पर हजारों लोगों के आंसुओं की गर्माहट में पिघलते हुए देखा। मैंने उस रात आंसुओं के समंदर में एक लड़की को जीवन का, परिवार का, जनता से एक नेता के सच्चे प्रेम और आदर का अर्थ पाते हुए देखा। तब मेरी उमर आठ-नौ बरस भी नहीं रही होगी, न में वहां था, मगर मुझे ऐसे लग रहा था कि यह सब मेरे सामने घटित हो रहा है। मैंने उन्नीस बरस की एक लड़की में अपने देश की महान परंपरा का बीज पड़ते देखा। मैंने अपनी कल्पना में जनता के लिए हमेशा खड़ा रहने वाला, एक नेता पैदा होते हुए देखा। लोगों की भीड़ में बैठे पुराने कार्यकर्ताओं का नाम लेकर जिक्र होने लगा और धीरे-धीरे हम सब भावनाओं के ज्वार से उतरने लगे।
गर्मियों में अक्सर लग जाने वाली आग में एक किसान का घर स्वाह हो गया था। उसकी मुट्ठी में बेटी की शादी के लिए बचाकर रखे अधजले नोटों की राख थी। भीड़ में सामने खड़ी जामों कस्बे की रमाकांति को जब उन्होंने रोते हुए देखा तो उसकी कहानी सुनाने लगीं और रोने से मना करते हुए उन्होंने कहा ‘रोओ मत, तुम बहुत हिम्मत वाली हो, तुम्हारी हिम्मत ने मुझे हिम्मत दी है।’ उन्होंने रमाकाति को अपने पास बुला लिया। राजीव भैया की बिटिया का भाषण अमेठी की जनता से रिश्ते की कहानी कहता गया। बोलीं- अगर अपने जीवन में किसी इंसान को पूजा तो वे मेरे पिताजी थे। अमेठी मेरे पिताजी की कर्मभूमि है। मैं इस भूमि को भी पूजती हूं। ये मेरे लिए व राहुल के लिए पवित्र भूमि है। प्रियंका ने लंबा भाषण दिया। फर्क करना मुश्किल था कि कौन बोल रहा है। महज एक बेटी या कांग्रेस पार्टी की एक नेता।
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