कानपुर के “हर्षद मेहता” शेयर ब्रोकर संजय सोमानी को 22 करोड़ के घोटाले में 3 और सीए को 5 साल की सजा।

वर्ष 1994 में इलाहाबाद बैंक कानपुर में हुआ था घोटाला, 30 साल बाद आया फैसला लखनऊ। बहुचर्चित संजय...

IAS-IPS अफसरों की सियासत में एंट्री : आज इस्तीफा कल चुनाव।

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IIT से बीटेक, फिर IPS और अब IAS टॉपर काफी रोचक है आदित्य श्रीवास्तव की कहानी

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कानपुर लोकसभा चुनाव 2024 : विकास के लिए समर्पित सांसद को चुनेंगे मतदाता।

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Kanpur : भाजपा प्रत्याशी रमेश अवस्थी ने इंडी गठबंधन के प्रभाव वाले कैन्ट, आर्यनगर और सीसामऊ में तेज की कदमताल..

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इतिहास के पन्नों में : कानपुर के इस इलाके को आखिर कैसे मिला तिलक नगर नाम??

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#Kanpur : लोकसभा प्रत्याशी आलोक मिश्र और विधायक समेत 200 लोगों पर केस दर्ज, अमिताभ बोले लोकतंत्र नहीं लाठीतंत्र।

यूपी के कानपुर (Kanpur) में इंडिया गठबंधन (India Alliance) के लोकसभा प्रत्याशी और समाजवादी पार्टी...

Kanpur : चोरों के हौसले बुलंद,स्वरूप नगर में दिनदहाड़े चोर स्कूटी लेकर रफूचक्कर।

कानपुर : बेखौफ अपराधी पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए शहर में ताबड़तोड़ चोरी की वारदातों...

Kanpur News : मरीजों की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं हैः मुख्य सचिव

कानपुर। प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने कहा कि मरीजों की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है।...
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कानपुर-सन् 1916 मे लोकमान्य तिलक लखनऊ कांग्रेस में शामिल होने के लिए आये थे, तो मैने महाराष्ट्र समाज की ओर से उनको कानपुर आने के लिए आमंत्रित किया । उस समय मेरी जान – पहिचान अधिक लोगो से नही थी । अरोड़ा जी (बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा) उस समय खास राजनैतिक कार्य-कर्ताओ मे थे। मै भी कांग्रेस का सदस्य था, इस कारण मै अरोड़ा जी से मिला और उनकी सहायता तिलक महाराज को ठहराने के लिए चाही। अरोड़ा जी ने तुरन्त ही आश्वासन दे दिया कि वे इस कार्य में पूरी सहायता करेंगे । उस समय विक्रम-क्लब की विशेष धूम थी और अरोड़ा जी भी उसके खास सदस्यों में से थे। विक्रम क्लब से उन्होंने हम लोगों के लिए तिलक महाराज को ठहरने वास्ते रेल बाजार मे सन्तोषचन्द्र भण्डारी के बंगले मे प्रबन्ध करा दिया और हर प्रकार की सहायता की।
(मार्गशीर्ष शुक्ल 5 संवत 2007 /अभिनन्दन भेंट नारायण प्रसाद अरोड़ा मे जी.जी. जोग का लेखांश )
सन् 16 तक तो कानपुर में काग्रेसियों का यह हाल था कि जब तिलक महाराज यहां आये, तो न तो कोई उन्हें ठहराने वाला मिला और न कोई उनकी सभा का सभापति होने को तैयार हुआ।

गाँधी जी की पहली यात्रा सन् 1916 में उसी दिन हुई जब तिलक महाराज पहली और अन्तिम बार कानपुर आये थे और परेड पर स्व० रायबहादुर प० विश्वंभरनाथ शुक्ल के सभापतित्व मे उनका व्याख्यान एक अपार जनसमूह के सामने हुआ था ।
(गत अर्द्ध-शताब्दी में कानपुर की प्रगति /सन् 1950 ई०)

कानपुर में कांग्रेस के संगठन का अभाव और अंग्रेजों के भय के कारण तिलक जी को इतने बड़े शहर में ठहरने के लिए कहीं कोई जगह नहीं मिली तो मजबूरन उन्हें ई आई आर के पुराने जंक्शन स्टेशन के पास एक धर्मशाला पर ठहराया गया । तिलक जी का कानपुर में बड़ी धूमधाम से जुलूस निकाला गया और एक सार्वजनिक सभा में उनका भाषण भी हुआ। चम्पारण सत्याग्रह के सिपाही राजकुमार शुक्ल ने स्वयं ऐसा भाषण को सुना था। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है कि इस जनसभा मे 10 हजार लोगों की संख्या थी।

राजकुमार शुक्ल ने तिलक जी से मुलाकात गाँधी जी से अलग ही की थी,उसी धर्मशाला मे जाकर जहाँ वह ठहरे हुए थे। डायरी के मुताबिक ” 1 जनवरी 1917 , सुबह गंगा जी का स्नान मैने और रामदयाल ने करके जलपान किया वो गाँधी जी, पोलक वो बाल गंगाधर तिलक महाराज से भेंट हुआ। 5 बजे शाम को बाल गंगाधर तिलक का लेक्चर सुना, 10 हजार आदमी थे। बाद मे चौक देखा। 9 बजे रात को वापस आये अनन्तराम की धर्मशाला मे रोटी बनी थी,खाकर मै रामदयाल सोये ।”
(चम्पारण सत्याग्रह का गणेश : अजीत प्रताप सिंह /लोकभारती प्रकाशन,प्रयागराज, वर्ष २०१८ ई०)

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

लोकमान्य तिलक का कानपुर मे भाषण
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कानपुर, १ जनवरी सन् १९१७
” सज्जनों “,
मुझे इस बात का बड़ा खेद है कि मैं आप लोगो के सम्मुख आपकी मातृभाषा हिन्दी में, जो भारत की राष्ट्रभाषा बनने का अधिकार रखती है, भाषण नहीं कर रहा हूँ। इस विराट जनसमुदाय को देख कर जो मेरे स्वागत के लिए यहाँ एकत्र हुआ है,मुझे हिन्दी न बोल सकने पर और भी अधिक दुख हो रहा है। मुझे दुख इस कारण से होता है कि मैं भी उन लोगों में से हूँ जो कहते हैं कि हिन्दी भारत की भावी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। परन्तु दुर्भाग्यवश हिन्दी न बोल सकने के कारण मैं अंग्रेजी में कुछ कहूंगा ।”

अब वाणिज्य लीजिए, आप लोग समझते हैं कि यह कानपुर नगर एक व्यापार का नगर है । मजदूर बहुत से है, परदेश को धन जा रहा है, हिन्दुस्तान के लाभ के लिए नहीं बल्कि और दूसरे देशों के लिए कच्चा माल बाहर भेजा जाता हैं और पक्का बनकर बाहर से आता है। ………. होमरूल केवल यही है कि आप अपने घर के मालिक बनें। .. …. …..अंत मे आपकी मातृभाषा में आपसे भाषण नही कर सका उसके लिए क्षमा माँगता हूँ |
(होमरूल अथवा स्वराज्य ,1927 ई० से उद्धृत अंश)

निष्कर्ष यह है कि लोकमान्य तिलक जी 31 दिसम्बर 1916 को कानपुर आये उसी दिन गाँधी जी भी पहली बार कानपुर आये थे। 1 जनवरी 1917 को परेड मैदान में सभा हुई लेकिन अध्यक्षता करने को कोई भी तैयार नहीं था अतः सभा मे मौजूद रायबहादुर विश्वंभरनाथ शुक्ल ने अध्यक्ष आसन पर बैठकर सभा की अध्यक्षता की थी। विश्वम्भरनाथ जी गवर्नमेंट स्कूल के अवकाशप्राप्त हेडमास्टर व पेन्शनर थे,आपके कार्यकाल मे ही मुंशी प्रेमचंद गवर्नमेंट स्कूल में अध्यापक थे। रायबहादुर विश्वंभरनाथ शुक्ल को सभापति आसन ग्रहण करने पर कलेक्टर ने तलब कर लिया, लेकिन विश्वंभरनाथ जी ने अपनी वाग्प्रवीणता से कलेक्टर को संतुष्ट कर उसके रोष से बच गये थे। श्रुति है कि तिलक जी ने इसी यात्रा के दौरान सुतरखाना नहरिया स्थित सुप्रसिद्ध गणेश मंदिर की नींव रखी थी।

” दास्तान ए तिलक हाल कानपुर “
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लोकमान्य तिलक के गोलोकगमन के बाद कानपुर मे तिलक समर्थको ने श्रद्धांजलि दी। इसी समय बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा के एक पुत्र हुआ जिसका नाम तिलक अरोड़ा रखा गया । बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा ने 1922 मे तिलक मेमोरियल सोसायटी की स्थापना की और उसके वह आजीवन मंत्री रहे। तिलक हाल के लिए खुर्दमहल वाले हिस्से की जमीन 1925 मे खरीदी गई। उक्त भूमि पर तिलक हाल की नीव 24 सितम्बर 1931 को पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी। तिलक हाल के प्रबंधक बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा रहे। तिलक हाल के निर्माण के बाद 24 जुलाई 1934 को महात्मा गांधी जी ने तिलक हाल का उद्घघाटन किया | इस अवसर पर अपनी पहली यात्रा का स्मरण करते हुए कहा था ….
” मैने आज प्रातःकाल जब सुना, कि मुझे तिलक-हाल खोलने का कार्य करना है, तो मुझे एक बात का स्मरण आ गया | जब मै पहली बार कानपुर आया था , तब मेरी यहां किसी से जान पहचान नही थी। कानपुर आकर मै गणेशशंकर विद्यार्थी को कैसे भूल सकता हूं ? उन्होने ही मुझे अपने घर पर टिकाया था। उस समय और किसी व्यक्ति की हिम्मत नही थी, कि वह मुझे अपने घर पर ठहराता | वह उन दिनो नौजवान थे। उस समय मुझे देश में थोड़े से लोग जानते थे। मै स्वयं भी नही जानता था कि यहां के राजनीतिक क्षेत्र मे मेरा क्या स्थान होगा | सद् भाग्य से तिलक महाराज भी उसी दिन नगर मे पधारे | उस जमाने मे तिलक जी को अपने घर मे ठहराना कोई आसान काम नही था | यह चिन्ता हुई, कि उन्हे कौन स्थान देगा | यह काम तो निर्भीक युवक गणेशशंकर से ही हो सकता था | मेरे ह्रदय मे तो इस नगर के संसर्ग के साथ ही गणेशशंकर जी की स्मृति भी कायम रहेगी | हम लोग जैसा जानते है, उन्होने वीर मृत्यु पाई | गणेशशंकर जी की सेवाएं क्या थी, उनका त्याग कैसा था, इसका आपको मुझसे ज्यादा पता है | उनको इस अवसर पर मै कैसे भूल सकता हूं ?
यह जो तिलक-हाल का उद्घाटन हो रहा है, और इसके अन्दर कानपुर के लोगो की जो श्रद्धा है, उसको मै जानता हूं | तिलक महाराज ने तो अपना सारा ही जीवन भारतवर्ष की उन्नति के लिए दे दिया | यह बात मेरे लिए भी प्रस्तुत है, और आपके लिए भी प्रस्तुत है | हिन्दू धर्म को अगर तिलक महाराज नही जानते थे, तो कोई नही जानता था | उन्होने जिस प्रकार वेद शास्त्रो पर प्रकाश डाला, उसके अर्थो का संशोधन किया, वैसा और किसने किया ? वह तो सच्चे सनातनी थे | पर उन्होंने यह कभी ख्याल नही किया, कि हम उच्च है, और वे नीच है | उनके साथ मैने इस विषय पर काफी बहस की थी | उन्होने जो कुछ हमे दिया, उसका चिरस्थायी स्मारक , जबतक हिन्दुस्तान को कायभ रहना है, तबतक कायम रहेगा | आज तो स्वराज्य की बात अस्वाभाविक सी लगती है | पर स्वराज्य मिलने पर भी यह स्वाभाविक हो जायगी | तब उनका दिया हुआ राजनीतिक सबक तो भूला भी जा सकेगा,पर उनकी विद्वता, उनकी आत्मशुद्धि और उनके संयम का विषय तो, हिन्दुस्तान जबतक जिन्दा रहेगा, तबतक सारी दुनिया मे अमर रहेगा | उसे कोई कैसे भूल सकता है ? तिलक महाराज का वह स्मारक तो अमर स्मारक रहेगा |”
( हरिजन सेवक, 03/07/1934)

तिलक हाल मे एक विशाल सभा भवन जिसमे एक हजार लोग बैठ सकते हैं व शहर व जिला कमेटियों के कार्यालय एवं अतिथिशाला व व्यायामशाला बना है। बाबू रामनाथ सेठ ने अपने बेटे की स्मृति मे अशोक हाल बनवाया जिसका उद्घाटन सन 1940 मे सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया। अशोक की याद मे अशोक पोलिटिकल लाईब्रेरी भी संचालित है । रामनाथ सेठ के शब्दों मे “अरोड़ा जी कानपुर मे तिलक मेमोरियल हाल बनवाने मे व्यस्त थे। उन्ही दिनो प्रिय अशोक से हमेशा की जुदाई हुई। कुछ अपनी इच्छा कुछ स्वर्गीय अशोक की आत्मा की प्रेरणा से स्वर्गीय अशोक का स्मारक तिलक मेमोरियल हाल मे सन्निहित करने का विचार हुआ। यह विचार अरोड़ा जी से प्रकट करने पर उन्होने तिलक मेमोरियल हाल सोसायटी के मंत्री के नाते तथा अपनी ओर से अपनाया। और इस अपनाने के परिणामस्वरूप तिलक मेमोरियल हाल में सन्निहित अशोकपार्श्वो तथा अशोक हाल व अशोक अतिथिशाला का जन्म तथा महात्मा जी के दर्शन हुए।”
मेरी दादी के भाई आचार्य लक्ष्मीधर बाजपेयी (मैथा, कानपुर) जब हिन्दी ग्रंथमाला व हिन्दी केसरी के संपादक थे तब तिलक जी को हिन्दी सिखाते थे यह क्रम अधिक दिन नही चल सका । रायपुर प्रवास मे माधवराव सप्रे के साथ मिलकर तिलक जी के ग्रंथ गीता रहस्य का अनुवाद भी किया था ।

साभार-अनूप कुमार शुक्ल महासचिव कानपुर इतिहास समिति
(तिलक हाल मुख्यालय के स्मृति पट्ट चित्र संदीप शुक्ला एडवोकेट द्वारा)


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