Controversy on Ashish Sahu in Kanpur
एक जमाना था जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सीना ठोक कर अपना चाल, चरित्र और चेहरा अलग होने का दावा करते थे। राजनीति में शुचिता के झंडाबरदार होने का दम भरते थे लेकिन चुनावी मौसम आते स्थितियां बिल्कुल बदल गई हैं और अब आपराधिक इतिहास वाले लोगों को भी पदाधिकारी बनाने में गुरेज नही की जा रही है अभी हाल ही में ऐसे कई मामले आ चुके है। ऐसे में निष्ठावान कार्यकर्ता अपने आपको ठगा महसूस कर रहा है।
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने कानपुर दक्षिण के पिछड़ा वर्ग मोर्चा की जिला और मण्डल कमेटी का ऐलान सोमवार को जिलाध्यक्ष डॉ वीना आर्या पटेल की संस्तुति के बाद पिछड़ा वर्ग मोर्चा के जिलाध्यक्ष रमाकांत शर्मा ने कमेटी घोषित की है। जिसमें एक हत्याकांड में सज़ायाफ़्ता को जिला मंत्री का पद दिया गया है। सूची में सजा याफ़्ता आशीष साहू का नाम शामिल होने पर विवाद की स्थिति खड़ी हो गई। बीजेपी के संगठन और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दबी जुबान सजायाफ्ता को पद दिए जाने का विरोध किया है और कहा कि इससे पार्टी की छवि धूमिल होती है।
चकेरी थाना क्षेत्र में रहने वाले आशीष साहू को बनाया बीजेपी पिछड़ा मोर्चा कानपुर दक्षिण का जिलामंत्री बनाया गया है। बताया जा रहा है। आशीष साहू चकेरी थाना क्षेत्र में सन्नी गिल मर्डर केस में सजायाफ्ता हैं। इसके साथ ही आशीष पर 2007 में व्यापारी की हत्या और लूट समेत विभिन्न धाराओं में मुकदमें दर्ज हैं।
छात्र नेता की हत्या में सजायाफ्ता
चकेरी थाना क्षेत्र मे रहने वाले छात्र नेता सनी गिल की 2008 में हत्या कर दी गई थी। हत्या के आरोप में डीएवी कालेज के पूर्व अध्यक्ष आशीष साहू मौके से गिरफ्तार हुए था हत्या की रिपोर्ट सनी के पिता ने चकेरी थाने में दर्ज कराई थी। बाद में हाइकोर्ट के आदेश पर मुकदमा सीतापुर स्थानांतरित हुआ था। जहाँ से आशीष समेत अन्य आरोपियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास सजा सुना दी गई थी लेकिन बाद में आशीष समेत अन्य आरोपी हाई कोर्ट गए थे जहाँ हाई कोर्ट ने आशीष साहू को दफा 302 के बजाय 304 के तहत दस साल की कड़ी सजा और पचास हजार जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके अलावा व्यापारी अभिनव जैन की हत्या और लूट के मामले में भी आशीष साहू को आरोपी बनाया गया था। और 28 सितम्बर 2007 को पुलिस ने अरेस्ट किया था।
कर्मठ कार्यकर्ताओं की उपेक्षा
आशीष साहू को संगठन में अहम पद दिए जाने पर विवाद की स्थिति बन गई है। संगठन के लिए दिन-रात काम करने वाले कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई है। साफ-सुथरी क्षवि वाले कार्यकर्ताओं को नजरंदाज कर एक अपराधी को तरजीह दी गई है।
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