भारत-बांग्लादेश दूसरे टेस्ट पर बारिश का साया, कानपुर स्टेडियम में किए जा रहे विशेष इंतजाम।

विज्ञापन IND vs BAN 2nd Test : भारत और बांग्लादेश के बीच 27 सितंबर से खेले जाने वाले दूसरे टेस्ट...

BCCI उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला की मां का निधन, 97 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

Rajiv Shukla: बीसीसीआई वाइस प्रेसीडेंट राजीव शुक्ला की मां का निधन हो गया है. राजीव शुक्ला की मां...

Kanpur : फर्जी दारोगा जब थाने पहुंचा तो असली पुलिस भी रह गई सन्न: बस एक गलती और खुल गई पोल…

फर्जी दारोगा बन जी रहा था आलीशान जिंदगी, थाने पहुंचा तो असली पुलिस भी रह गई सन्न; बस एक गलती और...

“अजान” के वक्त हिंदू नहीं कर सकेंगे पूजा, होगी कड़ी कार्रवाई

ढाका : शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर दुनिया चिंतित...

केसर पान मसाला के मालिक की पत्नी की मौत: आगरा एक्सप्रेस-वे पर टायर फटने से हादसा, कारोबारी दीपक कोठारी की पत्नी भी गंभीर

विज्ञापन कानपुर / मैनपुरी में केसर पान मसाला कंपनी के मालिक की पत्नी की सड़क हादसे में मौत हो गई।...

कानपुर-ज़ोनल हेड की प्रताड़ना से क्लस्टर मैनेजर की मौत : फाइनेंस कंपनी के क्लस्टर मैनेजर को आया हार्टअटैक, प्रताड़ना का आरोप,हंगामा।

मृतक के भाई अमित बाजपेयी का बयान कानपुर : सिविल लाइन्स में स्थित हाऊसिंग डवलपमेंट फाइनेंस कम्पनी...

कानपुर : लालईमली मिल पुनः चलने से मिलेगा हज़ारो लोगो को रोजगार -सांसद रमेश अवस्थी

▪️मोदी – योगी के नेतृत्व वाली डबल इंजन सरकार में कानपुर के सर्वांगीण विकास के लिए जुटे है...

Breaking News : BJP ने यूपी के 75 जिलों में प्रभारी मंत्री बदले, कैबिनेट मंत्री योगेंद्र उपाध्याय को मिला कानपुर का प्रभार।

विज्ञापन BJP ने यूपी के 75 जिलों में प्रभारी मंत्री बदल दिए हैं। योगी सरकार ने मंत्रिपरिषद की बैठक...

यूपी में 46 हजार करोड़ से लगेंगी सेमी कंडक्टर की तीन इकाइयां, 40 हजार से ज्यादा को मिलेगा रोजगार

विज्ञापन यूपी सरकार की सेमी कंडक्टर पॉलिसी ने दुनिया के दिग्गज समूहों को आकर्षित किया है। प्रदेश...

सीएम योगी आदित्यनाथ का कांग्रेस नेता पर पलटवार बोले ‘राहुल गांधी को समझ लेना चाहिए कि…

विज्ञापन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी की टिप्पणियों पर पलटवार...
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हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार सुरेश त्रिवेदी जी नहीं रहे. 59 वर्ष की अवस्था में बीमारी से चले गए. यह कोई जाने की उम्र नहीं; पर जाने की उम्र किसी को पता भी नहीं. हजारों साल से हमारे समाज में अग्रज शतायु होने, चिरंजीव होने का आशीर्वाद देते आए हैं. गंगापुत्र भीष्म को इच्छा
मृत्यु का वरदान था और खुद कृष्ण देवत्व की शक्ति वाले थे; एक बहेलिया ने उनके प्राण ले लिए. आना-जाना लगा रहेगा. आप आकर जिए कैसे? इच्छा मृत्यु वाले भीष्म जैसा या अपने युग में, दौर में, अपने वक्त में कृष्ण जैसा.
भाई सुरेश त्रिवेदी उस दौर के चमकते हुए पत्रकार थे जब पत्रकारिता एक तरफ अपना कलेवर बदल रही थी, और दूसरी तरफ पत्रकारिता में, खबरों में मालिकों, सम्पादकों की बिला वजह की दखल अपने शबाब पर जा रही थी. माफिया और अफसरों का रैकेट पत्रकारों की दुनिया में दाखिल होकर शहर के समाचारों को एक हद तक प्रभावित करने लगे थे. कानपुर जैसे बड़े महानगर में तमाम पत्रकार माफिया किस्म के लोगों के ‘घराने’ ज्वाइन करके दौलत के लिए आपराधिक गतिविधियों, अनैतिक गतिविधियों में लिप्त हो गए. उनमें से तमाम के चेहरे मालिकों के सामने बेनकाब भी हुए. कुछ के नाम पुलिस की फाइलों तक पहुँच गए थे.
ऐसे कठिन दौर में जब किसी बड़े समाचार, इवेंट पर सम्पादक से ज्यादा खबर माफिया नज़र रखने लगे थे; सुरेश त्रिवेदी फक्कड़ों की खबर लिखते रहे. छपते रहे, खबर नहीं छपने दी गई तो शहर भर में उस घटना का खुद ही ढिढोरा पीटते रहते… पत्रकारों के बीच, प्रेस काफ्रेंस में जुटे किसी भी दल के नेता, अफसरों के बीच औपचारिक और अनौपचारिक तरीके से. उनकी यह आदत निरपेक्ष भाव से रहने वाले लोगों को जितनी पसन्द थी उससे कहीं ज्यादा ”घरानों” की पत्रकारिता करने वाले लोगों को खटकती थी.
दैनिक जागरण में सुरेश जी मेरे वरिष्ठ सहयोगी थे. जब मै अमर उजाला और हिन्दुस्तान में था; सुरेश जी मेरी ही बीट पर काम करने वाले प्रतिद्वंदी रिपोर्टर भी. वे हमेशा हिम्मती और बिंदास आदमी बनकर रहे. साथियों के साथ दोस्ताना रवैया वाले. हौसला बढ़ाने वाले धारा के खिलाफ चलने और लिखने की हिम्मत रखने वाले पत्रकार. इसका खामियाजा उनको कई बार उठाना पड़ा. जात और पात से ऊपर के आदमी. भले और भोले भी.
कुछ घटनाएं याद हैं मुझे. हम दोनो कानपुर देहात डेस्क में थे. प्रभारी सुरेश जी थे. तब के मन्त्री महेश त्रिवेदी के खिलाफ ( खबर सच थी, तथ्यात्मक थी पर उनको खिलाफ लगी) एक खबर छपी. मन्त्री ने फोन किया. मैंने उठाया. उन्होंने आपत्ति दर्ज की और दूसरे दिन उसका फलोअप भी छपा, मन्त्री की बात भी. पर मन्त्री ताव में थे, मेरी जाति खोज लाये थे. किसी ने बताया होगा कि सुरेश त्रिवेदी प्रभारी हैं उनसे बात करो. मन्त्री ने सुरेश जी से बात की, कहा कि जो खबर लिखने वाला है वह कुर्मी ( चौधरी नरेंद्र सिंह जी को हराकर महेश कुर्मी बहुल इलाके से विधायक बने थे; इसलिए उनको लगा कि कहीं खबर लिखने/ लिखवाने वाला पक्षपाती हो सकता है) है. मन्त्री से हुई बात मै वहीं बैठे सुन रहा था. वे बात चीत की कमेंट्री भी करते थे और हंसते रहते. सुरेश जी ने कहा,सुनो महेश त्रिवेदी यह खबर मैंने सुरेश त्रिवेदी ने लिखी है, आगे आएगी तो फिर लिखी जाएगी. मन्त्री ने यह उम्मीद न की होगी क्योंकि तमाम ‘घराने वाले पत्रकार’ उनके आगे पीछे भी रहते थे. कोई देवेंद्र सिंह भोले का खैर ख्वाह कोई किसी और का. थोड़े ही दिन में सुरेश जी को देहात के इंचार्ज पद से हटा दिया गया, कोई दूसरा काम दे दिया गया. उसी के कुछ दिन बाद कानपुर प्रेस क्लब के चुनाव घोषित हुए. मैं और मे रे बैच में भर्ती हुए 4-5 साथी सुरेश जी की पेशेवर दबन्गई के मुरीद हो गए क्योंकि वे लीक तोड़ने वाले आदमी और पत्रकार थे. सुरेश जी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में खड़े हो गए. अनूप बाजपेई जी और अमर उजाला के चीफ रिपोर्टर विश्वेश्वर कुमार जी भी मैदान में थे. पूरे शहर में खेमे बंदी थी. पहले चुनाव अनूप बाजपेई जी और विश्वेवर कुमार जी के बीच था. जागरण के सम्पादकीय विभाग के अधिकारी सुरेश त्रिवेदी के बजाय खुलकर अनूप बाजपेई जी के लिए वोट मांग रहे थे. मेरा अनूप जी से तब तक सिर्फ राम जुहार वाला ही रिश्ता था. हम नए लोग सुरेश जी के साथ खुलकर मैदान में आना चाहते थे ( यानी उनके साथ दूसरे अखबारों में भी जाकर प्रचार की इच्छा थी) मगर अपने ही एक अधिकारी को सुरेश जी के बजाय अनूप जी के साथ देखकर हम लोग दूसरे बड़े और नरेंद्र मोहन जी के अति प्रिय माने जाने वाले सम्पादकीय अधिकारी के पास गए. उन्होंने बात शुरू करते ही मनशा भांप ली. बोले जय जागरण… उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया. पर उनका मन हम जान गए कि जागरण के साथ रहना है. हमारे मन में खुशियाँ भर गई. एक जागरण और सुरेश जी. वोट पड़े, नतीजा सामने आया. शायद एक या दो वोट से ( गलत हो तो कृपया सुधार दें) अनूप बाजपेई जी अध्यक्ष चुने गए. दूसरे नम्बर पर अमर उजाला वाले विश्वेश्वर जी थे. सुरेश जी को बहुत कम वोट मिले. अब जागरण में तरह तरह की चर्चाएं शुरू हुई. किसने किसको वोट दिया. एक बूढ़े पत्रकार ने taunt किया कि ब्रजेंद्र तो विश्वेश्वर कुमार को जीता आए. ब्रजेंद्र के चक्कर में नए लौंडे आ गए होते तो अनूप का चुनाव लौ.. लग जाता. उन्होंने इतना कहा ही था कि सुरेश त्रिवेदी जी अपना कमला पसन्द का बचा हिस्सा गटक गए और बोले भो… वाले सुनो… ब्रजेंद्र ने मुझको खुला वोट दिया था, उसके काम न लगाओ. यह taunt करने वाले खूसट पत्रकार नए लड़कों से पता नहीं क्यों चिढ़ते थे? बाद में हम लोगों को पता लगा कि उन्होंने taunt इसलिए किया था कि प्रेस क्लब के उस चुनाव को कुछ लोगों ने जातीय रंग कुछ ज्यादा भी दे दिया था.
बहरहाल, जागरण के भीतर अपने ही एक प्रिय अधिकारी को अपने खिलाफ देखकर सुरेश जी ने कुत्तों को आमलेट खिलाते हुए कसम खाई थी कि वे ऐसे ही रहेंगे जैसे हैं. हम लोग जब देर रात जागरण से लौटते तो फजलगंज चौराहे पर चाय पीते. आते जाते दूसरे पत्रकार साथी आ जाते. इस दौरान मैंने उनका पशु प्रेम भी देखा. एक आमलेट कुत्तों के लिए बनवाते. हम लोग भी खाते और चाय पीते. सुरेश जी को शर्ट उठाकर पेट पर हाथ फेरने की आदत थी. बदलते जमाने में जब बॉडी लैग्वेज भी मायने रखती है, सुरेश जी ऐसे ही जागरण के मालिकानों में शामिल और उस वक्त के असली सम्पादक संदीप गुप्त जी के सामने भी ऐसा कर बैठते थे, आदतन. हम लोग चुहल बाजी में उनकी नकल भी करते थे. सहारा वाले रामेंद्र सिंह चौहान इसके सबसे बड़े गवाह हैं और सुरेश जी गहरे मित्र भी. चौहान जी भी उसी बीट पर काम करते रहे जहाँ मै और सुरेश जी. मैंने जितना समझा सुरेश जी जिद्दी थे. जुनून वाले थे. वे सच के लिए लड़े. जन हित की पत्रकारिता करते हुए जीते रहे. वे “घरानों” की पत्रकारिता से मुक्त बने रहे. सबकी मोहब्बत उनकी उपलब्धियों में शुमार रहेगी. जिस शहर में वे प्रेस क्लब का चुनाव हारे थे, उसी शहर में वे एक नया क्लब स्थापित करके गए हैं. उनके बनाए क्लब के सदस्यों के सामने उनके सपनों को जिंदा रखने की चुनौती है. उनके परिवार के साथ हम सबको खड़े रहना होगा. मैं सुरेश जी को एक ऐसे पत्रकार के रूप में याद कर रहा हूँ जिनकी जिंदगी का रोजनामचा नए पत्रकारों के लिए एक किताब है और मौजूदा पत्रकारों के लिए आईना.

साभार-बृजेन्द्र प्रताप सिंह की फेसबुक वॉल से


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