उत्तरप्रदेश के कानपुर के जाजमऊ में स्थित मां पीतांबरा के मंदिर से कोई पुकार कभी अनसुनी नहीं जाती. राजा हो या रंक, मां के नेत्र सभी पर एक समान कृपा बरसाते हैं।
इस सिद्धपीठ की स्थापना त्रेतायुग में राजा ययाति द्वारा की गई थी. मां पीतांबरा का जन्म स्थान, नाम और कुल आज तक रहस्य बना हुआ है. मां का ये चमत्कारी धाम जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में देशभर में जाना जाता है.
मंदिर के आचार्य पंडित रमन मिश्रा बताते है मां पीतांबरा के एक हाथ में पाश, दूसरे में राक्षस की जिह्वा थाम रखी है.भक्तों के जीवन में मां के चमत्कार को आए दिन घटते देखा जा सकता है. लेकिन इस दरबार में भक्तों को मां के दर्शन बड़ी आसानी से हो जाते है।
माना जाता है कि मां बगुलामुखी ही पीतांबरा देवी हैं इसलिए उन्हें पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं. लेकिन मां को प्रसन्न करना इतना आसान भी नहीं है. इसके लिए करना होता है विशेष अनुष्ठान, जिसमें भक्त को पीले कपड़े पहनने होते हैं, मां को पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं और फिर मांगी जाती है मुराद.
कहते हैं विधि विधान से अगर अनुष्ठठान कर लिया जाए तो मां जल्द ही पूरी कर देती हैं भक्तों की मनोकामना. मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है और इसी रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं. राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं. माँ पीतांबरा शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी है और राजसत्ता प्राप्ति में माँ की पूजा का विशेष महत्व होता है।
मंदिर में मां पीतांबरा के साथ ही खेतेश्वर महादेव और सिद्धा देवी के दर्शनों का भी सौभाग्य मिलता है. मंदिर के दायीं ओर विराजते हैं महादेव, मन्दिर में घुसते ही मां पार्वती के दर्शन सिद्धा देवी के रूप में होते हैं. कहते है कि बाबा सिद्धनाथ के दर्शन सिद्धा देवी के दर्शन बगैर अधूरे माने जाते है।
मां पीतांबरा के वैभव से सभी की मनोकामना पूरी होती है. भक्तों को सुख समृद्धि और शांति मिलती है, यही वजह है कि मां के दरबार में दूर दूर से भक्त आते हैं, मां की महिमा गाते हैं और झोली में खुशियां भर कर घर ले जाते हैं।
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