कानपुर में बढ़े ज़मीनों के सर्किल रेट के पुनः मूल्यांकन के लिए विधायक अमिताभ बाजपेई ने लगाई आपत्तियां।

कानपुर में जमीनों के सर्किल रेट 9 साल बाद फिर बढ़ाए जा रहे हैं। तीन तहसीलों के शहरी क्षेत्रों के...

मंत्री से मिलकर सांसद रमेश अवस्थी ने कानपुर के लिए मांगी नौ शहरों से विमान सेवा।

विज्ञापन कानपुर : सांसद रमेश अवस्थी ने गुरुवार को नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री राममोहन नायडू से...

बलिया : ट्रकों से अवैध वसूली मामले में CM का एक्शन, SP और ASP बलिया का तबादला, CO, SHO, दारोगा सहित पूरी चौकी सस्पेंड, दो पुलिसकर्मी और 16 दलाल गिरफ्तार।

बलिया में वसूली कांड पर सरकार ने बड़ी कार्यवाही करते हुए कप्तान से लेकर सिपाही तक को सस्पेंड कर...

Rohingya in UP : रोहिंग्या के छिपने का ठिकाना बना कानपुर शहर, बीजेपी विधायक ने जतायी चिंता।

Rohingya in UP कानपुर शहर रोहिंग्या के छिपने का ठिकाना बन गया है। पिछले साल एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड...

बेनामी संपत्ति निषेध कानून में संशोधन का प्रस्ताव पास।

Uptvlive News : आम बजट 2024-25 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बेनामी परिसंपत्ति निषेध कानून...

Business News : निवेश पर नहीं लगाया जाना चाहिए था एंजल टैक्स, अब स्टार्टअप मजबूत होंगे

डीपीआइआइटी सचिव राजेश कुमार सिंह ने कहा-सरकार के फैसले से नवाचार को बढ़ावा देने में मिलेगी मददकहा...

Uptvlive Business News : अनुपालन को आसानी के लिए कैपिटल गेन टैक्स में बदलाव…

विभिन्न परिसंपत्ति निवेश की अवधि को तर्कसंगत बनाया गया सभी सूचीबद्ध परिसंपत्तियों की होल्डिंग अवधि...

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट भाषण।

🛑वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा कि ‘सरकार एक करोड़ युवाओं को अगले...

दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में पेश किया आम बजट 2024-25

➡भारत में महंगाई दर करीब 4 फीसदी ➡भारतीय अर्थव्यवस्था चमक रही है ➡ग्लोबल इकॉनमी मुश्किल दौर में है...

Kanpur : रेलबाजार पुलिस की वाहन चोर से मुठभेड़…

कानपुर की रेलबाजार पुलिस और शातिर बदमाश में रविवार देर रात रेलबाजार लोको कॉलोनी में मुठभेड़ हो गई।...
Information is Life

https://youtu.be/w_jvtASybhU

Mumbai Diaries 26/11 Review: इस वेब सीरीज में हर डिपार्टमेंट का काम देखने लायक है. इसे देखा जाना चाहिए. कुछ दृश्य विचलित कर सकते हैं. कुछ रुला सकते हैं. पूरी सीरीज में एक तनाव बना रहता है और निर्देशकों ने इसमें हास्य भरने की गलती नहीं की है. ऐसा कम देखने को मिलता है.

अमेजॉन प्राइम वीडियो की वेब सीरीज मुंबई डायरीज 26/ 11, 8 एपिसोड्स में है.

26 नवंबर 2011… मुंबई के लिए, महाराष्ट्र के लिए, भारत के लिए और दुनिया के लिए एक ऐसी रात थी जिसमें टेलीविजन पर इंसानियत को गोलियों से छलनी होते हुए देखा, बम की विस्फोट में भाई चारे के चीथड़े उड़ते हुए देखे और देश की अखंडता को चुनौती देते हुए आतंकवादियों के हाथों सैकड़ों मासूम लोगों को अपनी ज़िन्दगी को अलविदा कहते हुए देखा. उस रात और उसके बाद के करीब 60 घंटों तक दुनिया ने देखा कि पाकिस्तान जैसा मामूली देश, हिंदुस्तान से नफरत करने के नाम पर उनकी सेना और आतंकवादियों के ज़रिये, कैसे मुंबई जैसे महत्वपूर्ण शहर पर हमला करता है और वहशत का एक ऐसा अश्लील नृत्य होता है जिसे देख कर पत्थरदिल लोग भी पिघल कर रो पड़े थे. निखिल अडवाणी और निखिल गोंसाल्विस द्वारा निर्देशित वेब सीरीज मुंबई डायरीज 26/ 11, इस आतंकी हमले की वजह से जन्मी एक रक्तरंजित कहानी लेकर आये हैं, जिसमें दुखों के पहाड़ की तलहटी में छोटे छोटे सुखों के फूल खिले हैं. इस साल की सबसे अच्छी लिखी और निर्देशित वेब सीरीज के तौर पर इसे गिना जाएगा. कुछ एक जगह अगर छोड़ दें तो ये वेब सीरीज बहुत हद तक असली ज़िन्दगी से मिलती जुलती है.

26/ 11 के आतंकी हमले पर लाखों पन्ने रंगे जा चुके हैं, एक मुख्यमंत्री की नौकरी जा चुकी है, गृह मंत्री को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था और इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और कम से कम से आधा दर्ज़न डॉक्यूमेंटरीज और फिल्म्स और इतनी ही वेब सीरीज भी बन चुकी हैं. शुरुआत हुई थी राम गोपाल वर्मा की फिल्म “द अटैक ऑफ़ 26/ 11” से जिसका रिसर्च वर्क करते वक़्त तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के साथ वो भी अटैक साइट्स का जायज़ा ले रहे थे. होटल मुंबई, वन लेस गॉड, ताज महल जैसी फिल्मों के साथ सर्वाइविंग मुंबई , ऑपरेशन ब्लैक टोर्नेडो जैसी डॉक्यूमेंटरीज और द स्टेट ऑफ़ सीज जैसी वेब सीरीज ने इस हमले की प्लानिंग, हमले के पीछे की राजनीति और हमले के दृश्यों को बड़े ही अच्छे ढंग से दिखाया है. अमेज़ॉन प्राइम वीडियो की वेब सीरीज मुंबई डायरीज 26/ 11 इस हमले के एक अलग रूप को दर्शाती है.

मुंबई हमले में जितने भी लोग गोलियों का शिकार हो रहे थे उन्हें मुंबई के कामा हॉस्पिटल (फोर्ट एरिया) में लाया जा रहा था. मूलतः ये हॉस्पिटल बच्चों और औरतों के लिए बनाया गया था. 1886 में शुरू किये गए इस हॉस्पिटल की हालत किसी सरकारी अस्पताल जैसी ही थी. हमले में घायल लोगों को इसी हॉस्पिटल में लाया जा रहा था. वेब सीरीज में किस तरह से डॉक्टर्स अपनी निजी ज़िन्दगी से जूझते हुए, न्यूनतम सुविधाओं और उपकरणों को लेकर कैसे इन सभी घायलों का इलाज करने की कोशिश करते हैं., ये दिखाया गया है. जब अजमल कसाब और उसके साथी अबू इस्माइल ने एटीएस चीफ हेमंत करकरे, इंस्पेक्टर कामटे, एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर और उनके साथियों की गाडी पर गोलियों की बौछार कर उन्हें मार डाला था तो वो सभी कामा हॉस्पिटल लाये गए थे. इसके बाद अबू और अजमल की गाडी को पुलिस बैरिकेडिंग की मदद से घेर लिया गया था. एनकाउंटर में अबू वहीँ मारा गया और अजमल कसाब को पकड़ लिया गया था. इन दोनों को भी कामा हॉस्पिटल ही लाया गया था.

यश छेतीजा, अनुष्का मेहरोत्रा जैसे नए लेखक और निखिल अडवाणी की टीम के पुराने साथी निखिल गोंसाल्विस और संयुक्ता चावला शेख ने मिल कर मूल कहानी का आधार ले कर कुछ फेर बदल किये गए हैं. कामा हॉस्पिटल के अंदर आतंकी हमले में क्या क्या हुआ था इसकी जानकारी पूरी तरह से कभी सामने नहीं आयी लेकिन इस वेब सीरीज में हॉस्पिटल के काम करने के तरीके, उसमें आने वाली अड़चनों, स्टाफ और उपकरणों की कमी जैसे पहलुओं को काफी अच्छे से दिखाया गया है. चूंकि वेब सीरीज हॉस्पिटल में काम करने वालों पर बनी है इसलिए आतंकी हमला कहानी को निगलने की नहीं बल्कि दिशा देने का काम करता है. लेखक मण्डली को एक बैलेंस्ड स्क्रीन प्ले लिखने के लिए साधुवाद दिया जाना चाहिए.

डॉक्टर कौशिक ओबेरॉय की भूमिका में मोहित रैना ने जिस तरह का अभिनय किया है उसको देख कर लगता है कि इन्हें अच्छे रोल और अच्छे निर्देशक की दरकार है. पूरी सीरीज में उन्होंने एक कर्तव्यपरायण डॉक्टर की भूमिका निभाई है जो इलाज करने के लिए प्रोटोकॉल पर निर्भर नहीं है. एटीएस चीफ को बचा पाने में उनकी असमर्थता की वजह से वो पकडे गए आतंकवादी का इलाज करना नहीं रोकते जबकि एटीएस के अन्य अधिकारी उनकी इस हरकत की वजह से उनके खिलाफ हो जाते हैं, उन पर बन्दूक तान दी जाती है और मीडिया उन्हें विलन बनाने में लग जाता है. श्रेया धन्वन्तरि एक बार फिर एक तूफानी जर्नलिस्ट की भूमिका में हैं और पहली बार जब वो अपनी रिपोर्टिंग के दुष्परिणाम देखती हैं तो उनके चेहरे पर जो आत्मग्लानि के भाव आते हैं वो उनके किरदार को नयी ऊंचाइयां प्रदान करते हैं.

कोंकणा सेन शर्मा का रोल अपेक्षाकृत कम है लेकिन एक हिंसक पति से परेशान कोंकणा कैसे मरीज़ों के लिए अपनी दबी हुई पर्सनालिटी से लड़ती रहती हैं वो सिर्फ कोंकणा ही कर सकती थी. हॉस्पिटल के चीफ के रोल में प्रकाश बेलावड़ी अद्भुत हैं. हॉस्पिटल में ड्यूटी जॉइन करने के पहले ही दिन इतने बड़े हादसे से जूझते और अपने जीवन की कठिनाइयों से लड़ते तीन ट्रेनी डॉक्टर – मृण्मयी देशपांडे (छोटे शहर की अनुसूचित जाति की लड़की जिसे हर कदम पर उसकी जात का एहसास कराया जाता है), नताशा भरद्वाज (अपने सक्सेसफुल कैंसर सर्जन पिता की अमेरिका से पढ़ कर लौटी डॉक्टर बेटी जो पिता की महत्वकांक्षा में पिस चुकी है और डिप्रेशन की दवाइयां खाती रहती है) और सत्यजीत दुबे (जो मुस्लिम होने का टैग लेकर जी रहा है और एक अच्छा इंसान के रूप में खुद को साबित करने में लगा रहते हैं). टीना देसाई (डॉक्टर कौशिक की पत्नी और होटल की गेस्ट रिलेशन्स मैनेजर) जब होटल में फंसे गेस्ट्स को सुरक्षित निकालने के लिए अपनी जान की परवाह न करने में जुटी रहती हैं तो उनके दिमाग में अपने पति से टूटते रिश्ते और असमय गर्भपात के अवसाद भारी होता है. सन्देश कुलकर्णी ने एसीपी महेश तावड़े की भूमिका में क्या खूब परफॉरमेंस दिया है. इस सीरीज में एक बहुत ही महीन बात का खास ख्याल रखा गया है. किसी भी पुलिस वाले की कोई निजी कहानी नहीं दिखाई है सिर्फ डॉक्टर्स और हॉस्पिटल के स्टाफ के रिश्तों पर फोकस रखा गया है.

वेब सीरीज की सफलता में इसके बैकग्राउंड म्यूजिक का भी बड़ा हाथ है. संगीत आशुतोष पाठक का है जो कि इंडिपेंडेंट म्यूजिक इंडस्ट्री में सबसे सफल म्यूजिशियंस में से एक हैं. जावेद जाफरी का बहुत चर्चित गाना ‘मुम्भाई’ के पीछे भी आशुतोष का ही दिमाग है. नेटफ्लिक्स की सीरीज जामतारा के सिनेमेटोग्राफी से अचानक चर्चा में आये सिनेमेटोग्राफर कौशल शाह ने कैमरा कुशलता से संचालित किया है. भावनात्मक दृश्यों में उनका कैमरा बहुत ही प्रभावी रहा है. निर्देशक मिलाप ज़वेरी के भाई माहिर ज़वेरी ने एडिटिंग की कमान संभाली है. माहिर सच में माहिर हैं. एक भी पल बोरिंग नहीं है. घटनाएं लम्बी नहीं खींची गयी हैं. किसी भी किरदार की बैक स्टोरी को इतना नहीं बताया गया है कि मेडिकल ड्रामा की मूल कहानी से ध्यान भटक जाए. मुंबई डायरीज जीत है निखिल अडवाणी की. लेखकों की. अभिनेताओं की और कविश सिन्हा की. कविश ने कास्टिंग की है. एक भी अभिनेता ऐसा नहीं है जो फिट नहीं होता सिवाय पुष्कराज के जो वार्ड बॉय की भूमिका निभा रहे हैं. इस वेब सीरीज में हर डिपार्टमेंट का काम देखने लायक है. इसे देखा जाना चाहिए. कुछ दृश्य विचलित कर सकते हैं. कुछ रुला सकते हैं. पूरी सीरीज में एक तनाव बना रहता है और निर्देशकों ने इसमें हास्य भरने की गलती नहीं की है. ऐसा कम देखने को मिलता है.


Information is Life