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कानपुर: 90 के दशक की मशहूर फिल्म मेहंदी का वह दृश्य शायद ही कोई भूला हो, जिसमें नई नवेली दुल्हन के...

यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना पहुंचे जाना गांव, केसी लाल के रसोई में बनाई चाय वीडियो वायरल

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गैंगस्टर की कार्रवाई में पुलिस कमिश्नर को मजिस्ट्रेट की शक्ति देने को चुनौती।

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कानपुर के कांग्रेस से तीन बार सांसद रहे पूर्व कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का निधन।

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कानपुर : हिंदी प्रचारिणी समिति के साहित्यकार सम्मेलन में मुख्य अतिथि होंगे बिहार गवर्नर आरिफ़ मोहम्मद।

कानपुर। हिन्दी प्राचारीणी समिति, कानपुर उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार...

कानपुर : साइबर ठगों ने 3 डॉक्टरों को शेयर मार्केट में निवेश के नाम पर बनाया ठगी का शिकार, 5.7 करोड़ की रकम उड़ाई-साइबर थाने में 3 FIR दर्ज

कानपुर : शहर के तिलक नगर निवासी डॉ. राजीव रंजन एक संगठित साइबर फ्रॉड गैंग का शिकार हो गए। पीड़ित...

Dharmendra Death: दिग्गज एक्टर धर्मेंद्र का 89 साल की उम्र में निधन, लंबे समय से बीमार थे ही-मैन

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मुख्तार अंसारी की बांदा जेल में उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी, जिसके बाद उसे मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए ले जाया गया. यहां इलाज के बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. मुख्तार अंसारी की मौत के बाद प्रदेश भर में पुलिस अलर्ट मोड में आ गई है. गैंगस्टर मुख्तार अंसारी के खिलाफ करीब 61 केस दर्ज हैं।

कभी उत्तर प्रदेश का बड़ा माफिया रहे मुख्तार अंसारी की गुरुवार को मौत हो गई. बांदा जेल में उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी, जिसके बाद उसे मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए ले जाया गया. यहां करीब 1 घंटे के इलाज के बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. मुख्तार अंसारी की मौत के बाद प्रदेश भर में पुलिस अलर्ट मोड में आ गई है. गैंगस्टर मुख्तार अंसारी के खिलाफ 61 केस दर्ज हैं. इनमें हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, धोखाधड़ी, गुंडा एक्ट, आर्म्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट, सीएलए एक्ट से लेकर एनएसए तक शामिल है. इनमें से उसे 8 मामलों में सजा हो चुकी थी.

कई केस में मुख्तार को सजा हो चुकी थी. इसी के चलते वह वर्षों से जेल में बंद था. एक ऐसा केस में मुख्तार के नाम है, जिसने मुलायम सरकार तक हिला डाली थी. अपने रसूख के चलते उसने अपने में समय में सबसे चर्चित मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह पर ऐसा दबाव बनाया था कि इस केस को ही सरकार ने रद्द कर दिया था. इतना ही नहीं, मुख्तार पर एलएमजी का सौदा करने पर पोटा लगाने वाले पुलिस अधिकारी को महकमा छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया था.

ऐसे शुरू होता है पूरा मामला

बात साल 2004 की है. पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह वाराणसी में एसटीएफ चीफ थे. उनको वहां माफिया मुख्तार अंसारी और बीजेपी नेता कृष्णानंद राय के बीच होने वाले गैंगवार पर नजर रखने के लिए भेजा गया था. इस बारे में शैलेंद्र सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था, ”मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय पर नजर बनाए रखने की जिम्मेदारी एसटीएफ को दी गई थी. ये दोनों पूर्वांचल से आते थे, लेकिन जानी दुश्मन थे और मैं भी पूर्वांचल चंदौली का रहने वाला हूं. ऐसे में मुझे दोनों पर निगरानी रखने के लिए भेजा गया.”

विधायक को मारने की साजिश रचने लगा था मुख्तार

साल 2002 में कृष्णानंद राय पांच बार के विधायक रहे मुख्तार अंसारी को हराकर एमएलए बने थे. ये बात उसे रास नहीं आ रही थी. वो उन्हें मारकर अपने रास्ते से हटाना चाहता था. यही वजह है कि दोनों के बीच अक्सर गैंगवार होती रहती थी. उन पर नजर रखने के लिए शैलेंद्र सिंह उनके फोन टेप करने लगे. एक दिन मुख्तार अंसारी की फोन पर हुई बातचीत सुनकर वो सन्न रह गए. माफिया किसी से एलएमजी यानी लाइट मशीन गन खरीदने की बात कर रहा था. वो उससे कह रहा था कि किसी भी कीमत पर उसे एलएमजी चाहिए. वो इससे कृष्णानंद राय की हत्या करना चाहता था.

2004 में 1 करोड़ में एलएमजी खरीदने का किया था सौदा

मुख्तार ने जनवरी 2004 में ही कृष्णानंद राय को मारने के लिए सेना की एक लाइट मशीन गन को खरीदने की योजना बनाई और इसके लिए उसने 2004 में आर्मी के एक भगोड़े से चुराई गई लाइट मशीन गन खरीदने की डील भी की थी. फोन टैपिंग में पता चला है कि बाबूलाल मुख्तार से कह रहा था कि मेरे पास सेना से चुराई हुई लाइट मशीन गन है जो कि राष्ट्रीय राइफल से चुराई गई थी और उससे लेकर आया हूं और यह सौदा लगभग एक करोड़ में तय हो गया था.

मुलायम सिंह ने केस करा दिया था रद्द

मुख्तार अंसारी की फोन रिकॉर्डिंग और एलएमजी बरामदगी ने पुलिस टीम का हौसला बढ़ा दिया था. सबको लग रहा था कि अब उसके दिन लद गए. क्योंकि इतने संगीन अपराध में उसे सख्त से सख्त सजा होनी तय थी. पुलिस ने आर्म्स एक्ट के साथ पोटा भी लगा दिया था. लेकिन तब तक ये बात मुख्तार अंसारी को पता चल गई थी. वो उस समय न सिर्फ बाहुबली नेता था, बल्कि सरकार भी उसके बिना नहीं चल सकती थी. उसने बहुजन समाज पार्टी को तोड़कर समाजवादी पार्टी की सरकार बनवाई थी. मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. ऐसे में उसने मुलायम से बोलकर ये केस ही रद्द करा दिया.

डीएसपी शैलेंद्र सिंह पर बनाया था दबाव

यहां तक कि रातोरात आईजी बनारस, डीआईजी, एसपी सहित एक दर्जन बड़े अधिकारियों के तबादले कर दिए गए. वाराणसी में मौजूद एसटीएफ की यूनिट को वापस लखनऊ बुला लिया गया. डीएसपी शैलेंद्र सिंह पर इस केस को खत्म करने का दबाव बनाए जाने लगा. लेकिन उनके साथ मुश्किल ये कि उन्होंने केस दर्ज कराया था. अब वो उसे किस तरह से वापस ले. इसके बाद अलग-अलग तरीके से उनको प्रताड़ित किया गया. अधिकारी कहते थे कि मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव उनसे काफी नाराज हैं. उन्होंने कहा कि वो खुद मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी बात रखना चाहते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

आईपीएस को दबाव में देना पड़ा था इस्तीफा

अंतिम में भयंकर दबाव में बीच शैलेंद्र सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उनके खिलाफ कई सारे फर्जी केस दर्ज किए गए. विभागीय जांच बैठा दी गई. उनको गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. उनके टीम के इंस्पेक्टर अजय चतुर्वेदी पर भी जांच बिठाई गई, जो उनके रिटायरमेंट के बाद भी चलती रही. यहां तक कि 17 वर्षों तक सुनियोजित तरीके उन्हें प्रताड़ित किया गया. बीच में कई बार सरकार बदली लेकिन उनकी हालत जस के तस रही. लेकिन योगी सरकार के आने के बाद 6 मार्च 2021 को शैलेंद्र सिंह के खिलाफ दर्ज किए गए सभी केस कोर्ट के आदेश के बाद वापस ले लिए गए.


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