आज रंपत हरामी हमारे बीच नहीं रहे. लेकिन वे अपने पीछे पूरा एक दौर जीने के बाद ही गए हैं। 80 और 90 के दशक में शायद ही कोई हो जो रंपत हरामी को न जानता हो. गांव, कस्बों और शहरों में खूब कार्यक्रम होते थे. खास बात यह है कि बिना पुलिस और प्रशासन की परमिशन के बिना प्रोग्राम नहीं होते थे. रंपत हरामी और रानीबाला की जोड़ी की बड़ी डिमांड थी. जाति से ठाकुर यानि भदौरिया थे रंपत, लेकिन अपनी द्विअर्थी संवादों की शैली ने उन्हें हरामी बना दिया. किसी ने एक बार मजाक में हरामी क्या कहा, तब लेकर आज तक हरामी शब्द ही उनकी पहचान बन गया. रंपत ने एक बार बताया था कि उनके पिता पुलिस में इंस्पेक्टर थे, परिवार चाहता था कि वे पुलिस में जाएं या अच्छी नौकरी करें. पर रंपत चुलबुले थे, हाजिर जवाबी थे, एक नौटंकी में खूबसूरत रानीबाला को देखा तो उनके ही हो लिए. नौटंकी की कमान संभाल ली. समय बदला तो नौटंकी सिमटी, मोबाइल और टीवी के दौर ने मनोरंजन के तरीकों को बदला. अब नौटंकी सिमट गई. आप रंपत से सहमत और असहमत हो सकते हैं. क्योंकि नौटंकी में द्विअर्थी बातें ही होती थी, लेकिन उनकी पर्सनॉलिटी से बिल्कुल असहमत नहीं हो पाएंगे. क्योंकि एक दौर में युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक की जुबान पर रंपत हरामी के द्विअर्थी डायलॉग होते थे। कहते हैं समय सब बदल देता है. हालांकि, अब यूटयूब पर उनके वीडियो आते थे. पर अब न तो वे दर्शक रहे थे और न वैसे कद्रदान. फिर भी अस्तित्व की लड़ाई तो रंपत लड़ ही रहे थे. अब एक दौर जीकर रंपत अब अनंत यात्रा पर चल पड़े हैं. अब कानपुर की भाषा में कहें तो रंपत का हरामीपना वाकई में एक दौर को याद आता है.
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